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कॉमनवेल्थ गेम के लिए कृति के पिता को गिरवी रखना पड़ा अपना पुश्तैनी खेत, छह गोल्ड जीत कर लौटी।

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रिपोर्ट -अनमोल कुमार

कॉमनवेल्थ गेम में शामिल होने के लिए कृति के पिता को गिरवी रखना पड़ा अपना पुश्तैनी खेत, छह गोल्ड जीत कर लौटी

पटना जिले के खुरसरूपुर प्रखंड की कृति राज सिंह ने सब जूनियर पावर लिफ्टिंग कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में छह गोल्ड मेडल जीता है। न्यूजीलैंड के ऑकलैंड में यह प्रतियोगिता इन दिनों चल रही है। गर्व है हमें कृति की उपलब्धि पर।
लेकिन शर्म भी है कि ऐसी होनहार खिलाड़ी को न्यूजीलैंड जाने के लिए उसके पिता को अपना खेत गिरवी रखना पड़ा। इन दिनों तो संयोग ऐसा है कि उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे युवा नेता खुद एक खिलाड़ी भी रहे हैं। तब भी एक खिलाड़ी की अधिकारियों ने नहीं सुनी। मुख्यमंत्री जी को शायद इस होनहार पर भरोसा नहीं हो रहा होगा। कहाँ, सरकार का पैसा इसपर खर्च करके यूं ही बर्बाद करते रहें। मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और अन्य नेता-मंत्री को 200-250 किलोमीटर की दूरी तय कर किसी निजी कार्यक्रम में भी जाना हो तब ये उड़न खटोले से ही जाते हैं। उस समय इन्हें पैसे की बर्बादी की चिंता नहीं होती। मुख्यमंत्री-उपमुख्यमंत्री किसी जिले के दौरे पर जाते हैं तब 10-20 लाख रुपये तो यूं ही वारा-न्यारा हो जाता है। कोई शोर नहीं मचता। अधिकारी अग्रिम भुगतान लेकर उनकी आवभगत करते हैं। जब कोई होनहार युवा इन अधिकारियों के दफ्तर जाते हैं तब ये उनकी ऐसे पड़ताल में जुट जाते हैं मानो वे दूसरे देश से इनके पास मदद मांगने आये हों।
आखिरकार ऐसे में कैसे निखरेगी अपनी प्रतिभा। यदि आप ऐसे होनहारों को आगे नहीं बढ़ने देंगे। तब लाचार होकर यही लूट-छिनतई और दूसरे भ्रष्टाचार में शामिल होंगे। दरअसल, आप भी ऐसा ही चाहते हैं। जनता जितनी जाहिल रहे, जाति-पाती में उलझी रहे अपनी कुर्सी उतनी ही लंबी अवधि तक सुरक्षित रहेगी।
कृति और उसके पिता ने न्यूजीलैंड जाने के खर्चे के लिए सरकारी हाकिमों के दफ्तर तक गुहार लगाई। जब उम्मीद की डोर टूटने लगी तब लगा कि अब खुद ही कुछ करना होगा। कृति के पिता ललन सिंह को अपनी बिटिया पर भरोसा था। ईश्वर करे दुनिया के सारे पिता ललन सिंह जैसे हों, जिन्हें अपनी संतान पर ऐसा ही भरोसा हो। ललन सिंह ने तय किया कि बिटिया को किसी भी कीमत पर न्यूजीलैंड पहुंचा कर ही दम लेंगे। अफसोस यह रह गया कि बिटिया को ट्रेनिंग देने वाले कोच को साथ भेजने की रकम वे नहीं जुटा सके। आखिर, जो थोड़ी से जमीन थी उसे हृदय पर पत्थर रख कर गिरवी रखा था। अब बिटिया बिना किसी ट्रेनर के साथ पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में शामिल होने जा रही थी। मन में कई तरह की शंकाएं रही होंगी। लेकिन सबको दरकिनार करते हुए एक-दो नहीं छह गोल्ड मेडल जीते। शाबाश कृति। सच में अपने नाम को तुमने नाम की कीर्ति कर दी।

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