रवि शंकर शर्मा की रिपोर्ट!
प्रतिवर्ष दीपावली और लक्ष्मी पूजा के तुरन्त बाद देश भर में काली पूजा का आयोजन होता है। दुर्गापूजा की तरह ही माँ काली के पूजा का विधिवत आयोजन किया जाता है, मूर्तियों का प्रतिस्थापन कर उनका विधि विधान से पूजन किया जाता है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माँ दुर्गा की स्वरूप माँ काली का आवाहन सभी देवी देवताओं ने तब किया था जब रक्तबीज नामक असुर देवताओं के लिये अपराजेय हो गया था, देवताओं की पुकार पर माँ दुर्गा ने काली स्वरूप धारण कर रक्तबीज का संहार किया था। तभी माँ दुर्गा के काली स्वरूप की पूजा की जाने लगी। इन्हें रक्तबीज संहारिणी भी कहा जाता है। पटना जिले में सैकड़ों जगहों पर और बिहार में हजारों स्थानों पर मूर्ति स्थापित की जाती है और धूमधाम से इसका आयोजन किया जाता है, परन्तु इस बार लॉक डाउन के कारण करीब एक दर्जन स्थानों पर कलश रखकर ही पूजा सम्पन्न किया गया फिर भी कई जगहों पर कोलकाता से मूर्ति लाकर स्थापित किया जाता है और माँ काली की पूजा अर्चना की जाती है। बाढ़ से लेकर मोकामा तक इस बार भी दर्जनों स्थानों पर माँ काली की मूर्ति स्थापित की गई है जहाँ कोविड को ध्यान में रखते हुये माता की पूजा अर्चना की जा रही है।