कहने के लिए तो प्रतापपुर विधानसभा में दर्जनों नेता और उनके कार्यकर्ता है जो दिनभर बड़ा-2 राग अलापते रहते है लेकिन जमीनी स्तर पर कोई भी काम करता हुआ नजर नही आता है सबका काम बस व्हाट्सअप से शुरू होता है और फेसबुक तक आते-2 दम तोड़ देता है, लेकिन समस्या तब होती है जब कोई इंसान अच्छा काम कर रहा हो और उसे काम न करने दिया जा रहा हो, ये बात एकदम सही है जिनसे कुछ नही होता वो बस दुसरो पर उँगलियाँ उठाते है, खैर इससे आगे बढते है जिस इंसान के लिए ये पटकथा लिखी जा रही है उनका नाम है “कैप्टन करन सिंह” लोग देखकर सोचते है ऐसे आदमी को तो फिल्मो में होना चाहिए साफ-सुथरे लोग राजनीति में क्या कर रहे है, कैप्टन ने विधानसभा चुनाव 2017 में “अपनादल” से राजनीतिक पारी की शुरुवात की थी अंतिम समय मे टिकट मिलने से विधानसभा के काफी जगहों पर पहुँच नही पाये औऱ जातीय समीकरण कुछ ऐसा रहा की जिसकी चुनाव में कोई धमक नही थी वो चुनाव जीत गया और मेहनत लगन और ईमानदारी से दावेदारी पेश करने वाले कैप्टन करन मामूली वोटों के अंतर से चुनाव हार गये, हार का मलाल ऐसा रहा कि 2 साल विधानसभा में नज़र नही आये लेकिन एक लंबे अंतराल के बाद देश जब वैश्विक महामारी से जूझ रहा था तो प्रतापपुर वालो के लिए मसीहा बनकर सामने आये और तकरीबन हजारों मजदूरों और लोगो को उनके गंतव्य स्थान तक पहुचाने में मदद की, वापस आये क्षेत्र का दौरा किया लोगो से मिले और एक बड़ा जनसमूह का वर्ग उनके साथ नज़र आया, ऐसे में बिल में दुपके कुछ नेता भी बरसाती मेढक की तरह बाहर आये और साथ मे लाये अपने चमचो को फिर क्या? वादों पर वादा खैर ये पटकथा फिर कभी समझेंगे,
दुसरी तरफ जीते हुए प्रतापपुर के वर्तमान विधायक सिद्दीकी साहब जो मुर्गा भात के शौकीन है, उन्हें लोगो और क्षेत्र की कोई खबर नही है यहाँ तक की प्रतापपुर विधानसभा के कई गाँवो का नाम तक नही जानते है वो, फिर सवाल ये खड़ा होता है ऐसा शक्श जीत कैसे जाता है, क्या जातिवाद हमारे ऊपर इस कदर हावी है, सवाल विश्व हिन्दू परिषद और संघ वालो से भी है,अब असल बात ये है की क्या प्रतापपुर को सचमुच कैप्टन जैसे नेता की ज़रूरत है, क्या कैप्टन जैसे लोग ही प्रभावशाली और संकीर्ण राजनीति को जन्म देंगे, अपनी राय कमेंट बॉक्स में ज़रूर दे!