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10-11 जून, दोनों दिन है निर्जला एकादशी, व्रत में सुनें यह कथा

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प़स्तुति – अनमोल कुमार

इस साल निर्जला एकादशी को लेकर काफी भ्रम की स्थिति है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, व्रत 10 और 11 जून दोनों दिन रखा जा सकेगा। क्योंकि दोनों दिन एकादशी पहुंच रही है। हालांकि 11 जून को उदयातिथि में एकादशी व्रत उत्तम माना जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी और भीमसेनी एकादशी कहा जाता है। इस बार ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी 10 जून को सुबह 07 बजकर 25 मिनट पर प्रारंभ होगी, जो कि 11 जून को सुबह सुबह 05 बजकर 45 मिनट तक रहेगी।
महत्व
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित मानी गई है। इस दिन भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि निर्जला एकादशी व्रत करने से सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त हो जाता है। इस दिन व्रत कथा का भी विशेष महत्व है। व्रत कथा सुनने या पढ़ने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
कैसे रखें व्रत
निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिए सुबह स्नान आदि कर पीले वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर रखें और उनके सामने दीपक जलाएं। अब भगवान विष्णु की प्रतिमा पर तुलसी और पीला पुष्प अर्पित करें। मन से श्री हरि का ध्यान करते हुए निर्जला एकादशी की व्रत की कथा का श्रवण करें। व्रत का संकल्प लेते हुए निर्जला एकादशी का व्रत रखें। दिन पर सदाचार का पालन करें।
व्रत कथा
पौराणिक काल में एक बार भीमसेन ने वेद व्यास जी से कहा कि उनकी माता और सभी भाई एकादशी व्रत रखने का सुझाव देते हैं, लेकिन उनके लिए कहां संभव है कि वह पूजा-पाठ कर सकें, व्रत में भूखा भी नहीं रह सकते।
वेदव्यास जी ने कहा कि भीम, अगर तुम नरक और स्वर्ग लोक के बारे में जानते हो, तो हर माह को आने वाली एकादश के दिन अन्न मत ग्रहण करो। तब भीम ने कहा कि पूरे वर्ष में कोई एक व्रत नहीं रहा जा सकता है क्या? हर माह व्रत करना संभव नहीं है क्योंकि उन्हें भूख बहुत लगती है, जो बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।
भीमसेन ने वेदव्यास जी से निवेदन किया कोई ऐसा व्रत हो, जो पूरे एक साल में एक ही दिन रहना हो और उससे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। तब व्यास जी ने भीम को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में बताया। निर्जला एकादशी व्रत में अन्न व जल ग्रहण करने की मनाही होती है। द्वादशी को सूर्योदय के बाद स्नान करके ब्राह्मणों को दान देना चाहिए और भोजन कराना चाहिए फिर स्वयं व्रत पारण करना चाहिए। इस व्रत को करने व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महर्षि वेद व्यास जी की बातों को सुनने के बाद भीमसेन निर्जला एकादशी व्रत के लिए राजी हो गए। उन्होंने निर्जला एकादशी व्रत किया। तभी से इसे भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी कहा जाने लगा।

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