:- पंकज कुमार ठाकुर!
गुरुवार को जिस तरह से न्यायपालिका और कार्यपालिका भिड़ गई कतई इसे शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता और जिस तरह से पुलिसिया वर्दी की हनक झंझारपुर कोर्ट में जज के ऊपर पिस्तौल तानकर तानाशाही साफ शब्दों में जाहिर कर दिया ,तो आम जनमानस की गारंटी सरकार कैसे दे सकती है। जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो आखिर न्याय की गुहार किससे लगाएं, ऐसे कई सवालिया सवाल है जो सुरसा के तरह मुंह बाए खड़ी है! हालांकि मामला जो भी हो लेकिन फिलवक्त पुलिसिया वर्दी की मिट्टी पलीत हो रही है! खैर छोड़िए आगे बढ़ते हैं, और जानते हैं 24 वर्ष पूर्व ऐसा ही एक घटना भागलपुर कोर्ट में घटित हुई थी जहां अपराधिक मामले में ट्रायल के दौरान आयोजकों सिंह की गवाही हुई। और यह गवाही पूर्ण नहीं हो पाई, जिसके बाद वह हर ट्रायल पर गैर मौजूद रहे। जिसके बाद नवंबर 1997 को गैर जमानती वारंट जारी कर दिया जोखू सिंह पर जिसके बाद आनन-फानन में वह हाजिर हो गए और उन्हें जेल भेज दिया गया। जिसके बाद उनके वकील ने जमानत अर्जी वापस ले लिया बस क्या था जमानत अर्जी वापस लेने के बाद सैकड़ों की संख्या में पुलिसकर्मी एडीजे के कार्यालय तक दस्तक देकर जमकर तोड़फोड़ की, और जमकर हंगामा बरपाया जिसके बाद आनन-फानन में डॉक्टर ने एडीजी की जान बचाई तो, इस कांड के बाद कई पुलिसकर्मियों ने अपनी नौकरी से हाथ धोए, तो कईयों को सजा हो गई। तो केस का सिलसिला लंबा चलता रहा, और कई काल के गाल में समा गए। हालांकि झंझारपुर घटना की चारों ओर थूथू हो रही है। दरअसल अब यहां पर सोचने वाली बात यह है कि कि इन बर्दी को आखिर इतनी हिम्मत और ताकत आती कहां से है। यह खुद एक सवाल या सवाल है, और यूं कहें कि मिट्टीपलीत होता पुलिसिया वर्दी