:- न्यूज़ डेस्क
।।होलिका दहन एवं रक्षा बंधन में भद्रा काल पर विशेष विचार।।
हिंदू पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं
- तिथि,
- वार,
- योग,
- नक्षत्र और
- करण
इनमें करण एक महत्त्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है।
करण की संख्या 11 होती है
- बव
- बालव
- कौलव
- तैतिल
- गर
- वणिज
- विष्टि (भद्रा)
- शकुनि
- चतुष्पद
- नाग और
- किन्तुघ्न करण।
इन 11 करणों में सातवां करण विष्टि ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है।
एक माह में भद्रा अर्थात वृष्टि कब कब होती है:-
शुक्ल पक्ष अष्टमी+पूर्णिमा तिथि के पूर्वाद्ध में, चतुर्थी+एकादशी तिथि के उत्तरार्द्ध में, और कृष्ण पक्ष की तृतीया+दशमी तिथि के उत्तरार्द्ध में, सप्तमी+चतुर्दशी तिथि के पूर्वाद्ध में ‘भद्रा’ अर्थात विष्टि करण रहती है।
भद्रा काल के निषिद्ध कार्य:-
भद्रा काल में शुभ कार्य जैसे मुंडन, विवाह, गृह प्रवेश, तीर्थ स्थलों का भ्रमण, संपत्ति की खरीदारी, व्यापार की शुरुआत या पूंजी-निवेश आदि मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए।
भद्रा काल के शुभ कार्य:-
लेकिन भद्रा के दौरान किसी दुश्मन को परास्त करने की योजना पर काम करना, हथियार का इस्तेमाल, सर्जरी, किसी के विरोध में कानूनी कार्यवाही करना, जानवरों से संबंधित किसी कार्य को प्रारंभ करने जैसे कार्य किए जा सकते हैं।
भद्रा का लोक विचार:-
- भद्रा जिस समय जिस लोक में होती है, उसका प्रभाव भी उसी लोक में होता है।
- पृथ्वी लोक में भद्रा होने पर पृथ्वी पर मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं।
- भद्रा का वास स्वर्ग लोक और पाताल लोक में होने पर यह पृथ्वीवासियों के लिए शुभ रहती हैं।
भद्रा काल कब कहाँ और कैसे बीतता है:-
- चंद्रमा के कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होने पर भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है।
- चंद्रमा जब मेष, वृष या मिथुन राशि में होता है, तब भद्रा का वास स्वर्ग लोक में होता है।
- चंद्रमा के धनु, कन्या, तुला या मकर राशि में होने पर भद्रा पाताल लोक में वास करती है।
आवश्यक बातें:-
- कल अर्थात दिनांक 19 अगस्त 2024, सोमवार को चंद्रमा का गोचर मकर राशि में है जो संध्या ठीक 19 बजे कुम्भ में प्रवेश करेगा।
- वर्तमान में बीतता काल के हिसाब से भद्रा पाताल लोक में निवास कर रही है।
- ऊपर के सूत्रों के आधार पर वर्तमान समय पृथ्वीलोक के लिए अतिशुभ मुहूर्त प्रदान कर रहा है।
भद्रा काल में अगर अति-आवश्यक कार्य करने ही हों तो कम से कम क्या देखें:-
- यदि भद्रा के समय कोई जरूरी कार्य करना हो तो भद्रा की प्रारंभ की 5 घटी (2 घंटा) छोड़ देना चाहिए।
भद्रा का शरीर में निवास की अवधि:-
- भद्रा 5 घटी (2 घंटा) मुख में,
- 2 घटी (48 मिनट) कंठ में,
- 11 घटी (4 घंटा 24 मिनट) हृदय में और
- 4 घटी (1 घंटा 36 मिनट) पुच्छ में स्थित रहती है।
भद्रा काल के प्रभाव:-
भद्रा शारीरिक स्थिति के अनुसार निम्न प्रभाव दर्शाते हैं:-
- मुख में होने पर कार्य का नाश,
- कंठ में होने पर धन का नाश,
- हृदय में होने पर मृत्यु तुल्य कष्ट और
- पुच्छ में होने पर कार्य सिद्ध होते हैं।
होलिका दहन और रक्षा बंधन जैसे त्योहारों में भद्रा का विशेष विचार जाना यथोचित है क्योंकि इसके परिणाम समस्त मृत्युभुवन को समष्टि भाव में प्रभावित कर सकते हैं।
अतः कुछ पंडित जो अपना झूठा प्रभाव दिखाकर ओछी हरकत कर आमजन को दिग्भ्रमित कर रहे, उससे सर्वथा बचना चाहिए। इस क्रम में भास्कर सरीखे कुछ अन्य चैनलों अथवा लोगों का विश्लेषण पूर्णतः अमान्य है जिन्होंने दोपहर 13.30 बजे के बाद रक्षासूत्र बंधन की ओछी वकालत कर रहे जो इस विधा के दिये समस्त वैदिक सूत्रों से एकदम विपरीत है।
इन्हीं बातों को दृष्टिगत रखते हुए कल अर्थात दिनांक 19 अगस्त 2024 को रक्षाबंधन का त्योहार अहले सुबह से ही अति शुभ मुहूर्त में होगा। सबलोग अपने हिसाब से रक्षा-सूत्र बांधें।
~ ★ज्योतिषाचार्य निवेदिता विनोद★ ~