रवि शंकर शर्मा की रिपोर्ट!
नियुक्ति घोटाले के आरोपी तारापुर विधायक मेवालाल चौधरी ने आज ही पदभार सम्हाला था, और इसके बाद मुख्यमंत्री से मिलने गये, मुख्यमंत्री से मिलकर मेवालाल ने इस्तीफा देने का निर्णय लिया और जाकर इस्तीफा सौंप दिया।
लेकिन शपथ ग्रहण से लेकर आज तक सरकार की किरकिरी और फजीहत लगातार जारी है!
लोकतंत्र में मजबूत और सकारात्मक विपक्ष का होना ही लोकतंत्र की मजबूती और खूबसूरती है!
मेवालाल मामले पर विपक्ष लागातार हमलावर रहा, तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पर सीधा हमला कर रहे थे, इस्तीफे के बाद भी तेजस्वी रुके नहीं हैं वे अभी भी हमलावर हैं उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि ” सिर्फ एक इस्तीफे से काम नही चलेगा, वो सभी वादे आपको पूरे करने होंगे जो चुनाव के दौरान आपने किया है वरना चैन से रहने नही दूँगा!”
यानी मेवालाल के इस्तीफे से पहले जो फजीहत होनी थी सो तो हुई, इस्तीफे के बाद विपक्ष अधिक हमलावर है, तेजस्वी पूछ रहे हैं सी एम से कि आप इतने अनुभवी होकर एक भ्रष्टाचार के आरोपी किस आधार पर मंत्रिमंडल में शामिल किये?
बहरहाल मेवालाल से इस्तीफा लेकर सी एम ने अपने सुशासन बाबू की छवि को बचाने का भरसक प्रयास किया है! लेकिन सवाल तो बनता ही है कि जब मुख्यमंत्री को ये मालूम था कि मेवालाल पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं फिर उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल क्यों किया गया? जबाब है जातिगत राजनीति की मजबूरी!
और ये मजबूरी किसी एक दल का नही लगभग सभी दलों की है।
जो टिकट बँटवारे के साथ ही शुरू हो जाती है और मंत्रिमंडल के गठन तक चलती रहती है।
सभी दल के नेताओं को टिकट देने से पहले उम्मीदवार के बेदाग होने की जानकारी जनता को देनी चाहिये, बेदाग छवि के लोगों को टिकट मिलनी चाहिये, दागी उम्मीदवार चुनावी भाषणों का हिस्सा होना चाहिये ,इस पर बहस होनी चाहिये, लेकिन राजनीतिक दल जनता के सामने विकल्प ही नही छोड़ती और मजबूरन जनता को जहर पीना पड़ता है!
तेजस्वी भले आलोचना कर लें, लेकिन इस्तीफा लेकर नीतीश कुमार ने साहस दिखाया है !
हालाँकि अभी पक्ष विपक्ष से दर्जनों दागी विधायक हैं जिनके बूते सरकार भी चल रही है और विपक्ष भी हमला करने की स्थिति में !