खंडहर होता जा रहा है कथित शुजा-ए-शिकारगाह शिकारगाह।

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

अश्विनी कुमार श्रीवास्तव

पुरातत्व विभाग की खुदाई के बाद मिल सकते हैं कई पौराणिक अवशेष।

कालांतर में कथित शुजा-ए-शिकारगाह तीन मंजिल होने की है चर्चा।

बांका : मुगल बादशाह शाहजहां के दूसरे साहेबजादे शुजा द्वारा कथित रूप से बनाया गया शुजा-ए-शिकारगाह का अस्तित्व खतरे में है। पुरातत्व विभाग ने इस ऐतिहासिक धरोहर से अपनी आंखे फेर रखी है। इस ऐतिहासिक धरोहर कि अगर खुदाई होती है तो इतिहास के पन्नों में अन्य कई जानकारियां उभर कर सामने आने के साथ-साथ यह धरोहर पर्यटन स्थल के रूप में भी उभर सकता है। बांका जिले के रजौन प्रखंड अंतर्गत की किफायतपुर मौजे से सटे धौनी मौजे के अंतर्गत भागलपुर-बौंसी सड़क मार्ग के बीच अवस्थित है, यह ऐतिहासिक शिकारगाह।

कहते हैं कि यह शिकारगाह बादशाह शाहजहां के दूसरे पुत्र शुजा ने बनवाया था, हालांकि इतिहास के पन्नों पर ऐसी बातों का कहीं जिक्र नहीं है, लेकिन इस खंडहर नुमा भवन के कलाकृति आदि को देखकर यह मुगलकालीन ही जान पड़ता है। इतिहास विद् व डी एन सिंह महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य जीवन प्रसाद सिंह एवं इलाके के बड़े बुजुर्गों की मानें तो इस भवन का निर्माण 1638 ईस्वी से लेकर 1657 ईस्वी के बीच हुआ होगा। बादशाह सजा 1638 ईस्वी से लेकर 1657 ईस्वी तक लगातार बंगाल प्रांत के शासक बने रहे। उस वक्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा एक राज्य बंगाल ही कहलाता था।

जगह-जगह शिकारगाह बनवाने का शौकीन था शुजा–

मुगल कालीन कट्टर बादशाह औरंगजेब के चार भाइयों में दूसरा पुत्र शुजा था। दारा सबसे बड़ा, औरंगजेब तीसरा पुत्र, वहीं मुराद सबसे छोटा पुत्र था। शुजा को जब बंगाल प्रांत की सुबेदारी मिली, तब वह जगह-जगह शिकारगाह बनवाया था। दशकों से चर्चा है कि यह भी एक शिकारगाह ही था, जिसे शुजा ने बनवाया था। इतिहास में इस बात का उल्लेख है कि 1658 ईस्वी में जब औरंगजेब ने अपने पुत्र मोहम्मद सुल्तान को शुजा के साथ युद्ध करने भेजा, तब उस वक्त शुजा की हार हो गई। इसके बाद बंगाल क्षेत्र से उनकी सूबेदारी भी हाथों से निकल गई। इसके बाद से ही यह भवन कथित शुजा-ए-शिकारगाह खंडहर होता चला गया। रजौन प्रखंड के विष्णुपुर गांव में भी ऐसा ही एक खंडहर है, जिसे आज भी शिकार का ही कहा जाता है।

कालांतर में कथित शुजा-ए-शिकारगाह तीन मंजिल होने की है चर्चा —

कहा जाता है कि कालांतर में या भवन कभी तीन मंजिल हुआ करता था लेकिन अब इसका एक मंजिल भवन भी जमींदोज हो चुका है। रजौन प्रखंड के अनेकों बड़े बूढ़ों का मानना है कि अगर इस खंडहर भवन की खुदाई पुरातत्व विभाग की सहायता से की जाए तो निश्चित तौर पर कुछ अवशेष मिलेंगे, जो मुगलकालीन इतिहास के कुछ पन्नों को लोगों के सामने ला सकेगी। यह स्थल पर्यटन स्थल के रूप में भी उभर सकती है।

Leave a Comment

और पढ़ें