:- रागिनी शर्मा !
आज जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का पटना में बेहद गर्मजोशी के साथ भव्य स्वागत किया गया।
राज्य के सभी जिले के कार्यकर्ताओं और नेताओं का पटना में जमावड़ा दो दिन पूर्व से ही लगना शुरू हो गया था। इसके साथ ही मुंगेर लोकसभा क्षेत्र से सैकड़ों वाहनों के साथ कार्यकर्ता पटना में मौजूद थे।
ललन सिंह ने जिस तरह के स्वागत की अपेक्षा की होगी पार्टी के द्वारा ठीक उसी अनुरूप एयरपोर्ट से लेकर जदयु कार्यालय तक हाथी घोड़े और ढोल नगाड़े के साथ उनका भव्य स्वागत हुआ।
इसके साथ ही राजनीति के माहिर खिलाड़ी के रूप में खुद को स्थापित कर चुके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह भी साबित कर दिखाया कि देश मे मौजूद दर्जनों क्षेत्रीय दलों के बीच जदयु एकमात्र ऐसा दल है जिसमें वाकई में लोकतंत्र है और किसी भी परिवार का उसपर एकाधिकार नही है।
ललन के सामने चुनौतियाँ क्या है एक नजर इस पर भी डाल लेते हैं।
सबसे पहले तो पार्टी को एकजुट रखना उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी। विपक्षी दलों के द्वारा लगातार ये कहा जा रहा है कि चूंकि पहली बार किसी सवर्ण नेता को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है तो इससे आर सी पी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के समर्थको के बीच नाराजगी है, विपक्ष का तो यहां तक कहना है की जदयु में जल्द ही बड़ी टूट देखने को मिल सकती है।
हालाँकि जो ललन सिंह को जानते हैं वो ऐसी बात नही करते हैं, ये महज राजनीतिक बयानबाजी है।
सच्चाई इससे अलग है और वो ये है कि मौजूदा वक्त में जदयु नीतीश कुमार, ललन सिंह और आर सीपी सिंह की तिकड़ी है। आर सी पी सिंह केंद्रीय मंत्री बनकर खुश हैं, और अपना सबकुछ खोकर जदयु में रालोसपा का विलय करने वाले उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी से पहले ही कद के अनुसार पद प्राप्त हो चुका है, कुशवाहा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हैं।
इसलिये ऐसी टूट या बिखराव की संभावनाएं नगण्य हैं।
दूसरी चुनौती पार्टी के विस्तार और सरकार के साख को लेकर होगी।
चूँकि अध्यक्ष बनते ही दायित्व बड़ा हो जाता है, जिसमें पहला दायित्व संगठन के विस्तार का होता है।
विधानसभा चुनाव में जदयू का जो प्रदर्शन रहा उसके लिये जिम्मेदार कारकों में चिराग पासवान को प्रमुख माना गया, और फिर लोजपा में ऐसा भूचाल आया कि चिराग चिराग अकेले रह गये, इसका श्रेय भी राजनीतिक पंडित ललन सिंह को ही देते हैं। यानी जदयु ने चिराग से बदला पूरा कर लिया।
आज देश की राजनीति में जाति एक सच्चाई है और कोई भी दल ऐसा नही है जो जातीय समीकरण की अनदेखी कर सके। बल्कि कई दल तो जाति आधारित दल ही हैं। ऐसे में ललन सिंह को अध्यक्ष पद देकर नीतीश कुमार ने उनके सामने बड़ी लकीर खींचने की चुनौती भी रख दी है।
चूँकि ललन सिह सवर्ण जाति से आते हैं जो सूबे में भाजपा का कोर वोटर माना जाता है, नीतीश कुमार कि ये अपेक्षा जरूर होगी कि ललन सिंह सवर्णों को अधिक से अधिक संख्या में पार्टी से जोड़ें और खुद को साबित करें। बाकी चुनौतियों से तो ललन सिंह
आसानी से निबट लेंगे परन्तु ये चुनौती उनके लिये आसान नही होगा। और ये वक़्त से साथ तय होगा कि वे जदयु के साथ कितने सवर्णों को जोड़ पाते हैं?
इधर बढ़ते भ्रष्टाचार, अपराध और बेलगाम नौकरशाही से जनता जदयु से निराश चल रही है। केवल वर्ष 2021 की बात करें तो अबतक 1300 हत्याएँ बिहार में हो चुकी है, यानी प्रतिदिन औसतन सात हत्याए, और हर महीने लगभग चार अपहरण।
ऐसे में पार्टी की साख बचाने के लिये ललन सिंह और सीएम नीतीश कुमार को मिलकर काम करना होगा।
भ्रष्टाचार और अपराध एक बड़ी चुनौती है, जिसके बढ़ने से सुशासन का दावा करने वाली नीतीश सरकार को बड़ा धक्का लगा है।
ऐसा माना जाता है कि नौकरशाही नीतीश कुमार, आर सी पी सिंह और ललन सिंह के आसपास ही घूमती है इसलिये इस चुनौती भी निबटा जा सकता है।
लेकिन इसके लिये ललन सिंह और नीतीश कुमार को पुराना रूप अख्तियार करना पड़ेगा।
दरअसल 2004 के बाद जब नीतीश सरकार बनी तो बिहार अपराध और भ्रष्टाचार की आग में जल रहा था, तब भी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपराध और भ्रष्टाचार से निबटने की ही थी।
ऐसा कहा जाता है कि तब ललन सिंह ने ही ऐसे कुख्यात अपराधियों के लिस्ट तैयार किये जिससे बिहार के लोग त्रस्त थे, और उन्हें मुख्य धारा में शामिल होने की चेतावनी दी गई , तब जो मुख्यधारा में शामिल हुए वे आज भी जिंदा हैं जिन्होंने आँखे दिखाई वे मुठभेड़ में मार गिराये गये, उस वक़्त ललन सिंह पर जाति विशेष को टारगेट करने का बड़ा आरोप लगा था।
लेकिन तब इधर ललन सिंह सुशासन की स्थापना में नीतीश कुमार की मदद कर रहे थे तो उधर नीतीश राज्य की बिगड़ चुकी व्यवस्था को सम्हालने में लगे थे। और दोनों अपने मकसद में कामयाब रहे। बिहार में सुशासन की स्थापना हुई। बिहार तेज गति से आगे बढ़ा।
लेकिन आज बिहार की स्थिति खासकर अपराध और भ्रष्टाचार को लेकर लगभग फिर वहीं आ खड़ी हुई है। जिससे निबटने के साथ ही संगठन विस्तार और संगठन को एकजुट रखने के साथ ही नीतीश कुमार की तरह भाजपा से बेहतर सम्बन्ध बनाकर रखना भी ललन सिंह के सामने एक बड़ी चुनौती होगी।