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लग्न ग्रह और राशि फल का क्या होता है जीवन पर प्रभाव, जानें!

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प्रस्तुति अनमोल कुमार

*प्रथम भाव का स्वामी 'लग्नेश' अथवा 'प्रथमेश'*

१. प्रथम भाव अर्थात लग्न का स्वामी लग्नेश यदि लग्न अर्थात प्रथम भाव में ही बैठा हो तो जातक दीर्घायु स्वस्थ निरोग अत्यंत बलवान राजा अथवा भूमि का स्वामी होता है। और वह अगर सुनहरी गौ माता की सेवा करता है तो उसका यश और कीर्ति चारों दिशाओं में फैलती है।
२. प्रथम भाव का स्वामी लग्नेश यदि द्वितीय भाव में बैठा हो तो जातक स्थूल शरीर वाला, बलवान, दीर्घ जीवी, धनवान, अत्यंत धर्मात्मा, राजा, अथवा भूमि स्वामी होता है। अगर ऐसा व्यक्ति सफेद कलर की गौ माता की नियमित सेवा करता है तो उसके जीवन में कभी भी कष्ट और शत्रुओं का भाई नहीं रहता।
३. प्रथम भाव का स्वामी लग्नेश यदि तृतीय भाव में बैठा हो तो जातक शूरवीर, बलवान, श्रेष्ठ मित्रों वाला, दानी, धर्मात्मा,तथा अच्छे भाई बहनों वाला होता है। और अपार मेहनत कर के अपने लक्ष्य को पानी वाला होता है। ऐसे व्यक्तियों को कुंवारी गौ माता यानी बछड़ी या बछड़े की सेवा करनी चाहिए जिससे उसे कभी जीवन में धन खोने और बुरी संगत के लोगों से पाला नहीं पड़ता।
४. प्रथम भाव का स्वामी लग्नेश यदि चतुर्थ भाव में बैठा हो तो जातक अल्प भोजी, दीर्घायु, माता-पिता का भक्त, पिता द्वारा धन प्राप्त करने वाला धनी, सुखी, तथा राजा का प्रिय होता है और वह अपने मां का अति प्रिय होता है। ऐसे जातक को हमेशा गौशाला में जाकर अनेकों गायों की सेवा करनी चाहिए जिससे उसका ऐश्वर्य और कीर्ति पूरे जगत में फैल सके।
५. प्रथम भाव का स्वामी लग्नेश यदि पंचम भाव में हो तो जातक दानी दीधजीवी, धर्मात्मा,यशस्वी सुखी धनी श्रेष्ठ पुत्रों वाला राजा अथवा राजा के ही समान ऐश्वर्या शैली होता है। ऐसे जातक को राजनीति में अत्यंत सफलता प्राप्त करने के लिए श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ बने के लिए लाल कलर यानी गिर के नदी की सेवा करनी चाहिए। जिससे राजनीति में उसे सफलता प्राप्त हो सके।
६. प्रथम भाव का स्वामी लग्नेश यदि षष्ठम भाव में हो तो जातक रोगी छोटी-मोटी बीमारियों युक्त गुप्त विधाओं को जानने वाला नशे करने वाला बलवान लड़ाई झगड़े में निपुण कर्ज उठाने वाला होता है अगर ऐसे जातक गौशाला में जाकर छोटी बछड़ियों को अपने हाथ से गुड़ खिलाना चाहिए जिससे वह बीमारियों से मुक्त हो सके कर्ज से मुक्त हो सके।
*प्रथम भाव के स्वामी के और अनेकों प्रकार के वर्णन हमें अलग-अलग ज्योतिष ग्रंथ से प्राप्त होते हैं। इन सारे भावों के स्वामी के साथ बैठने वाले ग्रह और उन पर पाप ग्रह शुभ ग्रह के दृष्टि का भी अलग प्रभाव पड़ता है। उनकी महादशा अंतर महादशा मैं हमें उनके विशेष शुभ फल अशुभ फल प्राप्त होते हैं। ज्योतिष को समझने के लिए सहदेव जी भाटिया द्वारा लिखित ज्योतिष पुस्तक को पढ़ें जय गौ माता जय गोपाल अखिल विश्व कामधेनु सेवक ज्योतिषाचार्य अंकित रावल ब्राह्मण सिरोही राजस्थान।

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