निभास मोदी, भागलपुर।
महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की आज जयंती मनाई गई!
मैं एक मजदूर हूं जिस दिन कुछ लिख न लूं उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं, सचमुच यह मुंशी प्रेमचंद की वाणी लोगों को झकझोर कर रख देती है। उनके कलम की ताकत उन्हे अपना बना लेती है। उनकी लेखनी में मुख्य रूप से गांव का चरित्र चित्रण लाज़वाब रहा है और यही बात उन्हे सबसे अलग बनाती है। हम कह सकते हैं की” जिन वृक्षों की जड़े गहरी होती है उन्हें बार बार सींचने की ज़रूरत नहीं”एक महान कथाकार, नाटककार, पत्रकार, व बहुमुखी प्रतिभा धनी प्रेमचंद का आज जन्म दिवस है।
महान कथाकार प्रेमचंद्र की आज पावन जयंती है। इस उपलक्ष्य में आज तेज नारायण बनैली महाविद्यालय हिंदी विभाग द्वारा हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद्र के जयंती का आयोजन किया गया है जिस आयोजन में मुख्य रूप से प्रेमचंद की प्रेरणादायक कहानी कफन का नाटकीय मंचन किया गया और साथ ही बहुत ही छात्रों के प्रस्तुति एवं भाषण निबंध द्वारा इस कार्यक्रम को सफल बनाया गया। जिसमें मुख्य रुप से महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ संजय कुमार चौधरी एवं स्नातकोत्तर हिंदी विभागाध्यक्ष डॉक्टर योगेंद्र एवं टी एन बी कॉलेज के पूर्व प्राध्यापक डॉक्टर अंजनी कुमार राय थे। यह कार्यक्रम टी एन बी कॉलेज के महाविद्यालय प्रशाल में संपन्न हुई। कार्यक्रम के दौरान प्रेमचंद्र रचित कहानी पर आधारित नाटक कफन की प्रस्तुति कुल गीत की प्रस्तुति एवं स्वागत गान नृत्य व भाषण की प्रस्तुति की गई, मंच का संचालन प्रोफेसर नवीन कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ देवाशीष के द्वारा संपन्न हुआ, साथ ही दूसरे सत्र में विदाई समारोह का भी कार्यक्रम रखा गया।
प्रेमचंद्र हिंदी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक थे, उनका मूल नाम धनपतराय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद्र को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद्र के नाम से भी जाना जाता है, साथ ही साथ उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरदचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर भी संबोधित किया था। प्रेमचंद एक संवेदनशील लेखक, कुशल नागरिक ,कुशल वक्ता तथा सुधि विद्वान संपादक थे।
उनका जन्म आज के ही दिन 31 जुलाई 1880 ई. में वाराणसी के निकट लमही गांव में हुआ था ,उनकी मां आनंदी देवी थी तथा पिता मुंशी अजायब राय लमही में डाक मुंशी थे। उनके शिक्षा का आरंभ उर्दू ,फारसी से हुआ था, उनकी अवस्था जब सात वर्ष की थी तभी उनकी माता व चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहांत हो गया था।उनका प्रारंभिक जीवन काफी संघर्ष में रहा है।
प्रेमचंद आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं ,यूं तो उनके साहित्य जीवन का आरंभ 1901से हो चुका था और उनकी पहली हिंदी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसंबर अंक में 1915 में शॉत नाम से प्रकाशित हुई और 1936 में अंतिम कहानी कफन नाम से प्रकाशित हुई ।
बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद्र ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, संपादकीय ,संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। उन्होंने कुल 15 उपन्यास 300 से कुछ अधिक कहानियां ,3 नाटक, 10 अनुवाद ,सात बाल पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख संपादकीय भाषण भूमिका पत्र आदि की रचना की। उनके उपन्यास है सेवासदन , प्रेमआश्रम, रंगभूमि ,कायाकल्प, निर्मला ,गवन ,कर्मभूमि ,गोदान आदि।
उनके जीवनकाल में कुल 9 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए सोजेवतन ,सतसरोज, नवनिधि ,प्रेमपूर्णिमा, प्रेमपचीसी ,प्रेमप्रतिमा, प्रेमद्वादशी, समरयात्रा ,मानसरोवर और कफन।
साथ ही बताते चलें कि प्रेमचंद ने अपनी कला के शिखर पर पहुंचने के लिए अनेकों अनेक प्रयोग किए हैं। जिस युग में प्रेमचंद ने अपने हाथों में कलम उठाई थी उस समय उनके पीछे ऐसी कोई ठोस विरासत नहीं थी और ना ही विचार और प्रगतिशीलता का कोई मॉडल ही उनके सामने था, लेकिन उन्होंने गोदान जैसे कालजई उपन्यास की रचना की जो एक आधुनिक क्लासिक माना जाता है। उन्होंने खुद गढ़ा और खुद कर दिखाया। 8 अक्टूबर 1936 में उनकी जीवन लीला समाप्त समाप्त हो गई लेकिन उनकी लेखनी सर्वदा जीवित रहेगी, सवों के दिलों में राज करते रहेगी।