रिपोर्ट- प्रमोद/सीवान
सिवान के दारौंदा प्रखंड के भीखा बांध में भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक भैया बहिनी मंदिर है।मंदिर के पीछे लगभग एक समय की कहानी सुनाई जाती है। सिवान के भैया-बहिनी मंदिर में रक्षाबंधन के दिन पूजा के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। इस मंदिर के प्रांगण में दो वट वृक्ष हैं। इन वृक्षों के प्रति लोगों की काफी आस्था है और रक्षाबंधन के दिन दूर-दराज से यहां ग्रामीण पहुंच कर पूजा-अर्चना करते हैं। देखने से ये दोनों वृक्ष ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे एक-दूसरे की रक्षा कर रहे हैं। मंदिर के प्रति लोगों की विशेष आस्था है, इसलिए रक्षाबंधन के दो दिन पूर्व हर वर्ष पूजा सोनार जाति द्वारा विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। लोक कथाओं में प्रचलित है कि मुगल शासन काल में एक भाई अपनी बहन की विदाई करा उसे डोली में लेकर भभुआ अपने घर जा रहा था। इसी दौरान दारौंदा के भीखाबांध गांव समीप मुगल सिपाहियों ने उसकी बहन की सुंदरता देखकर डोली रोक उसके साथ दुर्व्यवहार करने का प्रयास किया।यह देख बहन की रक्षा के लिए उसका भाई सिपाहियों से उलझ गया। पीड़ित बहन ने अपने आप को असहाय महसूस करते हुए भगवान का स्मरण किया। उसी समय धरती फटी और भाई-बहन दोनों धरती के गर्भ में समाहित हो गए। डोली उठा रहे कुम्हारों ने वहीं पास में मौजूद कुएं में कूद कर जान दे दी। कुछ दिनों बाद यहां एक ही स्थल पर दो वट वृक्ष हुए जो कई बीघा जमीन पर फैल गए। वृक्ष ऐसे दिखाई देते हैं लगता है कि एक-दूसरे की सुरक्षा कर रहे हों। इसके बाद इस वट वृक्ष की पूजा शुरू हो गई। इलाके के लोग पूजा-अर्चना करते थे। इसकी महत्ता बढ़ने के साथ यहां एक मंदिर का निर्माण हुआ।मंदिर प्रांगण में मौजूद पेड़ को भाई-बहन का प्रतीक माना गया और इसकी भी पूजा-अर्चना शुरू की गई। बताया जाता है कि यहां जो भी श्रद्धालु पूजा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहा जाता है कि दोनों भाई-बहन के इस बलिदान के कारण लोगों द्वारा मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है।
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