:– डाॅ कल्याणी कबीर,जमशेदपुर
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आज का युग महिला सशक्तिकरण की बात करने वाला युग है । आज की युवतियां शिक्षित है और जागरूक भी । पर इसके बावजूद आज की युवा पीढ़ी अपनी परंपरा और संस्कृति को जीवित रखती है । आधुनिकता की इस आँधी में भी वे अपनी आस्था की जड़ों को कमजोर नहीं पड़ने देती जो एक अनुकरणीय और प्रशंसनीय बात है । ये और बात है कि आज की नयी पीढी अपनी परंपरा को और अपने पर्व त्योहार को एक अलग दृष्टिकोण से देखती है और उसे उसी तरह से अपनाती भी हैं । आज वट सावित्री पूजा है जिसमें हम हमारे पौराणिक पात्रों में से एक सशक्त महिला पात्र सावित्री की पूजा करते हैं।
महाभारत के वनपर्व में मार्कण्डेय ऋषि युधिष्ठिर को सत्यवान एवं सावित्री का आख्यान सुनाते हैं। इस पौराणिक कथा के अनुसार मद्रदेश की राजकुमारी सावित्री अपने पिता अश्वपति के आदेश और सहमति पर देशाटन करके, सदैव सत्य बोलने वाले ‘सत्यवान’ नामक राजर्षि-पुत्र को अपने पति के रूप में चुनती है । सत्यवान जंगल से लकड़ी काटकर अपने तथा अपने माता-पिता की आजीविका की पूर्ति करता है । पर एक दुखद बात यह थी कि सत्यवान की आयु केवल एक साल शेष बची थी। जब यमराज, सत्यवान की जीवात्मा को ले जाते हैं तो सावित्री भी उनके साथ चल देती है। वह अपने विवेक, बुद्धि एवं मृदुसम्भाषण से यमराज को प्रसन्न करती है और यमराज उसके पति को फिर से जीवनदान देते हैं। यह कथा सर्वविदित है। पर विचारणीय तथ्य यह है कि इस कथा से सावित्री का कमजोर पक्ष नहीं बल्कि उसकी सशक्त छवि दिखाई देती है।
यदि हम नारी सम्मान के दृष्टिकोण से इस पौराणिक कथा को देखें तो पाएंगे कि
देवी सावित्री एक ऐसी नारी चरित्र हैं जिसने अपने पिता के आदेश से अपने लिए वर का चुनाव किया और यह जानने के बावजूद भी कि उसके होने वाले पति की आयु एक वर्ष ही बची है , उन्होंने अपना निर्णय नहीं बदला। इससे उनके भीतर की दृढ़ता, आत्मविश्वास और चुनौती को स्वीकार करने की निर्भीकता दिखाई देती है।
देवी सावित्री ने अपनी बुद्धिमता और साहस के बल पर यमराज से अपने पति की लंबी आयु के लिए संघर्ष किया। इतना ही नहीं अपनी बुद्धिमत्ता से और अपने समर्पण भाव से उन्होंने जीत भी हासिल की और उसके पति को यमराज ने जीवनदान दे दिया । यह पौराणिक कथा हर किसी को मालूम होना जरूरी है। पर साथ ही इस पौराणिक कथा से यह सोच समझ विकसित होनी चाहिए कि
संबंधों में समर्पण और दृढ़ निश्चय का होना बहुत ही आवश्यक है जिस तरह से देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान की रक्षा के लिए और उनके जीवन दान के लिए निर्भीक होकर संघर्ष किया और यमराज ने भी उसके समर्पण से प्रसन्न होकर उनके पति को जीवन दान दे दिया उसी प्रकार आज भी यदि हम अपने संबंधों में अपना समर्पण और अपना विश्वास बनाए रखें तो परिवार में और पारिवारिक संबंधों में एक हरीतिमा बनी रहेगी।
ये निर्विवाद रूप से सच है कि सती, सावित्री एवं सीता भारतीय संस्कृति की सशक्त नारियों की प्रतीक हैं, उनकी कथाएं हर नारी को आत्मविश्वास से लबरेज़ करती हैं। ये वो पूजनीय महिलाएँ हैं जिन्होंने अपने बुद्धि-विवेक एवं तप-बल से अपने निर्णय लिये हैं और गलत बात के विरोध में खड़े होकर संसार के नियमों को बदलने का साहस दिखाया है । वे प्रेम , साहस और स्नेह की ऐसी दिव्य प्रतिमाएं हैं जिनसे प्रेरणा लेकर कोटि-कोटि भारतीय नारियां अपना पथ आज भी प्रशस्त कर रही हैं।
आज की युवा पीढ़ी और महिलाएँ अपनी स्वीकार्यता से इन देवी महिला पात्रों का अनुसरण कर रही हैं। उन पर कोई बाध्यता नहीं, दबाव नहीं है । पर वट सावित्री पूजा जैसी पवित्र परंपराओं का जीवित रहना निस्संदेह हमारे जीवन के लिए सुंदर और सुखद संकेत है।