इस समय पुरे देश की नज़र जहाँ एक तरफ कोरोना वायरस की तरफ है तो वही दूसरी तरफ बिहार चुनाव भी इससे अछूता नहीं है,बिहार चुनाव में लगातार सियासी वाकयुद्ध देखने को मिल रहा है सारी राजनितिक पार्टियाँ जातिगत आधार पर लोगो को लुभाने की पुरजोर कोशिश कर रही है ,दूसरी तरफ एनडीए में चुनाव को लेकर शीर्ष स्तर के नेताओं की कई दौर की बैठक हो चुकी है। फिर भी सीटों की गुत्थी सुलझ नहीं सकी है। एनडीए में अभी भी बैठकों का दौर ही है। लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्री य अध्यसक्ष चिराग पासवान के अड़़े रहने के कारण एनडीए में सीटों के बंटवारे को लेकर मामला अटक हुआ है। देर शाम भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि रामविलास पासवान के अस्वस्थ रहने की वजह से थोड़ी देरी हो रही है। एनडीए में सीट शेयरिंग का निर्णय एक-दो दिनों के भीतर हो जाएगा। इस बीच भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव व देवेंद्र फड़णवीस जदयू की प्राथमिकता सूची के साथ शुक्रवार को दिल्ली रवाना हो गए हैं। महत्वपूर्ण यह है कि लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने शनिवार को दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड की बैठक बुलायी है। एनडीए में साथ रहकर वह विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे या फिर अलग हो जाएंगे इस पर वह आज आखिरी निर्णय करेंगे।
सीटों पर संग्राम के बीच लोजपा ने शुक्रवार को नीतीश कुमार के सात निश्चय को भ्रष्टाचार का बड़ा माध्यम भी बता दिया। लोजपा ने यह भी कह दिया कि उन्हेंव सात निश्चकय से कोई लेना-देना नहीं है। एनडीए में उनका बिहार फर्स्टक, बिहारी फर्स्टे विजन डॉक्यूनमेाट शामिल रहेगा। वहीं जदयू के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ने सीट शेयरिंग के मसले पर यह कहा कि एनडीए में आॅल इज वेल। एक-दो दिनों में सीटों का ऐलान हो जाएगा।
गठबंधन में घटक दल तो होते हैं पर घटक दलों के घटक दल हों, ऐसा पहली बार बिहार में देखा जा रहा है। बिहार राजनीतिक प्रयोगों की धरती रही है। हो सकता है इसे व्यापकता मिल जाए। इसिलए भी कि इस नए प्रयोग में जातीय गठजोड़ को नए सिरे से साधने की कोशिश की गई है। बिहार के चुनाव में जाति की भूमिका पर इतने रिसर्च हो चुके कि शायद यही जाति आधारित वोटिंग जारी रहने का आधार न बन जाए। मंडल के बाद लालू की सामाजिक चेतना से जो नया निर्णायक जातीय गोलबंदी बनी थी उसे नीतीश कुमार ने इंद्रधुनषि गठबंधन से 2010 में बेमानी कर दिया था।
पिछले चुनाव में लालू का साथ लेकर नीतीश ने नैया पार कर ली। इस बीच जीतन राम मांझी चले गए। अब आ गए हैं। पर फिर भी नीतीश को लगा कि बीजेपी के सवर्ण-ओबीसी वोट पर आश्रित रहने के साथ जेडीयू के वोट बैंक को और मजबूत किया जाए। नीतीश कुमार महादलित आयोग और पासवान जाति को उसमें शामिल करने का दांव पहले ही चल चुके हैं। हाल में इसे और मजबूती मिली है। उन्होंने दलितों की हत्या होने पर घर वालों में एक को नौकरी देने और अब दलित फेस अशोक चौधरी को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर नया पासा फेंक दिया है।
दलित कार्ड की मजबूरी के पीछे अनिष्ट की आशंका
दरअसल दलित कार्ड की मजबूरी के पीछे अनिष्ट की आशंका है। जब पहले फेज के चुनाव के लिए पर्चा दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू हो गई हो, ऐसे नाजुक वक्त में कोई भी दल या गठबंधन फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। सबको दलितविरोधी करार दिए जाने का डर जो सता रहा है। इस लिहाज से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) बाकी दलों की तुलना में कहीं ज्यादा संवेदनशील है। क्योंकि पिछले पांच साल का इतिहास उसे डराता है। हाथरस की ताजा घटना से वो डर वापस लौट गया है।
बिहार विधानसभा चुनाव (bihar assembly election 2020) से पहले ही जनता दल यूनाइटेड/जेडीयू (JDU) और लोक जनशक्ति पार्टी/एलजेपी (LJP) के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। एलजेपी नेता चिराग पासवान ने सीएम नीतीश कुमार के दलित की हत्या पर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की घोषणा पर चिट्ठी भेजकर सवाल उठाया तो जेडीयू भड़क गई। जेडीयू ने चिराग पासवान को चेतावनी देते हुए कहा कि हमारा गठबंधन बीजेपी के साथ है, एलजेपी के साथ नहीं।
चिराग पासवान की नीतीश सरकार को भेजी गई चिट्ठी को लेकर पूछे गए सवाल पर जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि चिराग पासवान को भद्दे बयानों से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि चिराग अगर खुद को एनडीए का हिस्सा मानते हैं तो वह नीतीश कुमार के खिलाफ बयानबाजी न करें। बीजपी के साथ हमारा गठबंधन है, एलजेपी के साथ नहीं। उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि जीतनराम मांझी पहले भी एनडीए का हिस्सा थे, तो अब चिराग को आपत्ति क्यों है।
चिराग ने लगाया था वादा पूरा न करने का आरोप
बिहार के मुख्यमंत्री को लिखे एक पत्र में चिराग पासवान ने रविवार को नीतीश कुमार पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों से पूर्व में किए गए वादों को पूरा नहीं करने का आरोप लगाया। चिराग पासवान ने कहा कि एससी, एसटी समाज का कहना कि इसके पूर्व तीन डिसमिल जमीन देने का वादा भी सरकार ने पूरा नहीं किया था, जिससे अनुसूचित जाति और जनजाति समाज को निराशा हुई थी। हत्या एक अपराध है और अपराधियों में डर न्याय प्रक्रिया का होना चाहिए ताकि हत्या जैसे जघन्य अपराध से बचें।