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महाभंडारा के साथ श्रीविष्णु महायज्ञ की हुई पूर्णाहुति।

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(आरा से अख्तर शफी निक्की की रिपोर्ट)

महाभंडारा के साथ श्रीविष्णु महायज्ञ की हुई पूर्णाहुति।
यज्ञ से वातावरण होता है पवित्र:-देवराहाशिवनाथदासजी।

भारत के महाविभूति अंतरराष्ट्रीय महायोगी ब्रम्हलीन श्रीदेवराहा बाबाजी महाराज की पुण्यतिथि पर श्रीदेवराहा धाम सिअरुआ में त्रिकालदर्शी, परमसिद्ध संतश्रीदेवराहाशिवनाथजी महाराज के सानिध्य में हो रहे श्रीविष्णु महायज्ञ की आज पूर्णाहुति हो गई।काशी के प्रसिद्ध यज्ञाचार्य पंडित डॉक्टर भूपेन्द्र पांडेय और उनके सहयोगियों के द्वारा वेदमंत्रों से ग्यारह लाख आहुतियां यजमानों से हवनकुण्ड में दिलाई गई।वहीं लगभग 22 हजार श्रद्धालुओं ने संतश्रीदेवराहाशिवनाथजी महाराज से गुरुदीक्षा ली।इसके बाद संतश्रीदेवराहाशिवनाथजी महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि सारे जप-तप निष्फल हो जाते हैं, तब यज्ञ ही सब प्रकार से रक्षा करता है। सृष्टि के आदिकाल से प्रचलित यज्ञ सबसे पुरानी पूजा पद्धति है। आज आवश्यकता है यज्ञ को समझने की। वेदों में अग्नि परमेश्वर के रूप में वंदनीय है। यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म माना गया है। समस्त भुवन का नाभि केंद्र यज्ञ ही है। यज्ञ की किरणों के माध्यम से संपूर्ण वातावरण पवित्र व देवगम बनता है। वेदों का संदेश है कि शाश्वत सुख और समृद्धि की कामना करने वाले मनुष्य यज्ञ को अपना नित्य कर्तव्य अवश्य समझें। भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवत गीता में अर्जुन से कहते हैं, हे अर्जुन! जो यज्ञ नहीं करते हैं, उनको परलोक तो दूर यह लोक भी प्राप्त नहीं होता है। जिन्हें स्वर्ग की कामना हो, जिन्हें जीवन में आगे बढ़ने की आकांक्षा हो उन्हें यज्ञ अवश्य करना चाहिए। यज्ञ कुंड से अग्नि की उठती हुई लपटें जीवन में ऊंचाई की तरह उठने की प्रेरणा देती हैं।
यज्ञ करने वाले बड़भागी होते हैं। इस लोक में उनका दु:ख-दारिद्रय तो मिटता ही है, साथ ही परलोक में भी सद्गति की प्राप्ति होती है।वहीं लगभग 50 हजार श्रद्धालुओं ने महायज्ञ का प्रसाद ग्रहण किया।वहीं बिहार सहित झारखंड, नेपाल, बंगाल, पंजाब, हरियाणा, नयी दिल्ली सहित अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु भक्त पहुंचे थे।वहीं काशी, हरिद्वार, अयोध्या, वृंदावन से हजारों संत इस महायज्ञ में भाग लिए।जिला प्रशासन, मीडिया बंधु,सहित संपूर्ण ग्रामीणों का अद्भुत सहयोग रहा।

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