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जीवनदाता सूर्य देव की उत्पति कथा, कौन हैं माता-पिता?

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प़स्तुति – अनमोल कुमार

वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य से ही धरती पर जीवन संभव है और इसीलिए वैदिक काल से ही भारत में सूर्य की उपासना का चलन रहा है। वेदों की ऋचाओं में अनेक स्थानों पर सूर्य देव की स्तुति की गई है।
सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा जी के मुख से ‘ऊँ’ प्रकट हुआ था, वही सूर्य का प्रारम्भिक सूक्ष्म स्वरूप था। इसके बाद भूः भुव तथा स्व शब्द उत्पन्न हुए। ये तीनों शब्द पिंड रूप में ‘ऊँ’ में विलीन हए तो सूर्य को स्थूल रूप मिला। सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न होने से इसका नाम आदित्य पड़ा।
जन्मकथा
सूर्य देव के जन्म की यह कथा भी काफी प्रचलित है। इसके अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र मरिचि और मरिचि के पुत्र महर्षि कश्यप थे। इनका विवाह हुआ प्रजापति दक्ष की कन्या दीति और अदिति से हुआ। दीति से दैत्य पैदा हुए और अदिति ने देवताओं को जन्म दिया, जो हमेशा आपस में लड़ते रहते थे।
इसे देखकर देवमाता अदिति बहुत दुखी हुई। वह सूर्य देव की उपासना करने लगीं। उनकी तपस्या से सूर्यदेव प्रसन्न हुए और पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। कुछ समय पश्चात उन्हें गर्भधारण हुआ। गर्भ धारण करने के पश्चात भी अदिति कठोर उपवास रखती, जिस कारण उनका स्वास्थ्य काफी दुर्बल रहने लगा।
महर्षि कश्यप इससे बहुत चिंतित हुए और उन्हें समझाने का प्रयास किया कि संतान के लिए उनका ऐसा करना ठीक नहीं है। मगर, अदिति ने उन्हें समझाया कि हमारी संतान को कुछ नहीं होगा ये स्वयं सूर्य स्वरूप हैं। समय आने पर उनके गर्भ से तेजस्वी बालक ने जन्म लिया, जो देवताओं के नायक बने और बाद में असुरों का संहार किया। अदिति के गर्भ से जन्म लेने के कारण इन्हें आदित्य कहा गया। वहीं कुछ कथाओं में यह भी आता है कि अदिति ने सूर्यदेव के वरदान से हिरण्यमय अंड को जन्म दिया, जो कि तेज के कारण मार्तंड कहलाया।
विस्तृत कथा
सूर्यदेव की विस्तृत कथा भविष्य, मत्स्य, पद्म, ब्रह्म, मार्केंडेय, साम्ब आदि पुराणों में मिलती है। प्रात:काल सूर्योदय के समय सूर्यदेव की उपासना करने से सूर्यदेव प्रसन्न रहते हैं और जातक पर कृपा करते हैं।
सूर्य ने माता की इच्छा पूर्ण करते हुए शत्रुओं का निर्दयता से दमन किया इसलिए सूर्य को क्रूर ग्रह कहा गया है नाकि दुष्ट या पापी। सूर्य की जन्म भूमि कलिंग देश, गोत्र कश्यप और जाति ब्राह्मण है। सूर्य गुड़ की बलि से, गुग्गल धूप से, रक्त चन्दन से, अर्क की समिधा से, कमल पुष्प से प्रसन्न होते हैं।
रथ में एक पहिया, सांप है लगाम
सूर्य के रथ में केवल एक पहिया है। सात अलग-अलग रंग के तेजस्वी घोड़े उसे खींचते हैं और उनका सारथी लंगड़ा है, मार्ग निरालम्ब है, घोड़े की लगाम की जगह सांपों की रस्सी है।श्रीमद्भागवत्‌ पुराण के अनुसार सूर्य के रथ का एक चक्र (पहिया) संवत्सर कहलता है। इसमें मास रूपी बारह आरे होते हैं, ऋतु रूप में छह नेमिषा है, तीन चौमासे रूप नाभि है। रस रथ की धुरी का एक सिरा मेरूपर्वत की चोटी पर है और दूसरा मानसरोवर पर्वत पर, इस रथ में अरुण नामक सारथी भगवान सूर्य की ओर रहता है।
दो पत्नियांं और 10 पुत्र
सूर्यदेव की दो पत्नियां हैं संज्ञा और निक्षुभा। संज्ञा के सुरेणु, राज्ञी, द्यौ, त्वाष्ट्री एवं प्रभा आदि अनेक नाम हैं तथा छाया का ही दूसरा नाम निक्षुभा है। संज्ञा विश्वकर्मा त्वष्टा की पुत्री है। भगवान्‌ सूर्य को संज्ञा से वैवस्वतमनु, यम, यमुना, अश्विनी कुमार द्वय और रैवन्त तथा छाया से शनि, तपती, विष्टि और सावर्णिमनु ये दस संतानें हुई।
स्वरूप
सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा 6वर्ष की होती है। प्रिय रत्न माणिक्य है। सूर्य की प्रिय वस्तुएं सवत्सा गाय, गुड़, तांबा, सोना एवं लाल वस्त्र आदि हैं। सूर्य की धातु सोना और तांबा है। सूर्य की जप संख्या 7000 है।
इसका बीज मंत्र- ‘ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ है। वहीं, सामान्य मंत्र- ‘ऊँ घृणि सूर्याय नमः’ है। यदि सूर्य निर्बल हो तो नित्य सूर्य उपासना, सूर्य को अर्ध्य देने से, रविवार का व्रत करने से और सूर्यदेव के नित्य दर्शन करने से सूर्य देवता प्रसन्न और बली होते हैं।

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