✍️ शंकर
सदानंद बाबू को श्रद्धांजलि देने पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन और भी कई मंत्री। कहलगांव में नेताओं की भीड़ लगी है। पुलिस प्रशासन ने पूरे कहलगांव शहर की घेराबंदी कर रखा है। सिर्फ मंत्री-संतरी की गाड़ियां ही अंदर जा सकती है, बाकी बाजार में अगर किसी का घर है तो वह साइकिल से भी नहीं जा सकता।
मुख्यमंत्री के आगमन पर उनके सुरक्षा के नाम पर इस प्रकार की प्रशासनिक निरंकुशता/तानाशाही कहलगांव के लोगों ने शायद पहली बार देखी।
मुख्यमंत्री के आगमन पर भागलपुर सर्किट हाउस का रास्ता कुछ 100 मीटर के लिए बंद करते हुए तो मैंने कई बार देखा है पर किसी शहर के सभी रास्ते को बंद करने का तालिबानी निर्णय मैंने पहली बार देखी।
बहुत सारे लोग अपना घर जाने के लिए पुलिस वाले की चिरौरी करते दिखे और पुलिस वाले अपनी नौकरी का हवाला देता।
यह सिर्फ लोगों को उसके घर तक जाने से रोकने भर की बात नहीं थी। यह एक किस्म से दिवंगत नेता और उनकी जनता के अंतिम मिलन के बीच की प्रशासनिक बेरिकेडिंग भी थी।
मैंने कई लोगों को दिवंगत नेता से उसके व्यक्तिगत संबंध का हवाला देकर उनके श्राद्ध में शामिल होने जाने देने के लिए अनुरोध करते देखा लेकिन उसे जाने नहीं दिया गया।
नतीजा…! मैंने वैसे बहुत सारे लोगों को शहर के बाहर से ही लौटते भी देखा जो अपने दिवंगत नेता सदानंद बाबू को अंतिम विदाई देने कई किलोमीटर सफर कर कहलगांव आये थे।
बेशक सदानंद बाबू नेताओं के नेता थे पर जनता के बीच भी ऐसे थे कि उनके समर्थक खुद को सदानंदी कहलाने में गौरव महसूस करते थे। ऐसे में सवाल उठा कि अंतिम कर्म की बेला में अपने समर्थकों-चाहने वालों को कर्मस्थल तक पहुँचने से रोकने वालों को सदानंद बाबू की आत्मा माफ करेगी?
बहरहाल, पटना में लोजपा संस्थापक स्वर्गीय रामविलास पासवान की बरसी से दूर रहने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे सदानंद बाबू के श्राद्ध में आने के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। इसकी समीक्षा उचित समय पर करूँगा।
फिलहाल मेरी नजर में मुख्यमंत्री जी अगर भागलपुर से कहलगांव तक सड़क मार्ग से जाकर सदानंद बाबू के श्राद्ध कर्म में शामिल होते तो यह उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होती। ठीक है कि प्रशासन भागलपुर से कहलगांव तक की सड़क को बंद कर देता हम लोगों के लिए…! हम इसे भी बर्दाश्त करते हैं क्योंकि बर्दाश्त करना हमारी जीन में है। पर इसी बहाने मुख्यमंत्री महसूस करते कि सदानंद बाबू क्यों अपने जीवन काल में एनएच 80 के उद्धार के लिए पत्र लिखा करते थे। कम से कम इसी बहाने बैतरणी बनी एनएच अपने स्वरूप में कुछ हद तक तो लौट आती।