आलेख – अनमोल कुमार!
कर्ण के रथ को फंसा सकता है……
द्रौपदी का चीरहरण करा सकता है……
अगर किसी से डरना है तो वह है समय
महाभारत में एक प्रसंग आता है….
जब धर्मराज युधिष्ठिर विराट के दरबार में पहुँच कर कंक बन द्यूत विद्या राजा विराट को सिखाने लगे !
जिस बाहुबली के लिए रसोईए दिन रात भोजन परोसते रहते थे, वह भीम बल्लभ का भेष धारण कर स्वयं रसोइया बन गया।
नकुल और सहदेव पशुओं की देखरेख करने लगे।
दासियों से घिरी रहने वाली महारानी द्रौपदी….. स्वयं एक दासी सैरंध्री बन गई ।
और वह धनुर्धर….. उस युग का सबसे आकर्षक युवक, महाबली योद्धा, द्रोण का सबसे प्रिय शिष्य, वह पुरुष जिसके धनुष की प्रत्यंचा पर बाण चढ़ते ही युद्ध का निर्णय हो जाता था, वह पौरुष का प्रतीक,नायकों का महानायक अर्जुन, एक “नपुंसक” बृहनला बन गया….!
युधिष्ठिर राजा विराट का अपमान सहते रहे….. पौरुष के प्रतीक अर्जुन एक नपुंसक सा व्यवहार करते रहे…… नकुल और सहदेव पशुओं की देख रेख करते रहे…… भीम रसोई में पकवान पकाते रहे…. और द्रौपदी एक दासी की तरह महारानी की सेवा करती रहीं……!
परिवार पर एक विपदा आई तो धर्मराज अपने परिवार को बचाने हेतु कंक बन गया, पौरुष का प्रतीक एक नपुंसक बन गया, एक महाबली साधारण रसोईया बन गया…..
पांडवों के लिए वह अज्ञातवास नहीं था, अज्ञातवास का वह काल उनके लिए अपने परिवार के प्रति अपने समर्पण की पराकाष्ठा थी !
वह जिस रूप में रहे, जो अपमान सहते रहे……. जिस कठिन दौर से गुजरे….. उसके पीछे उनका कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं था, अज्ञातवास का वह काल परिस्थितियों को देखते हुए, परिस्थितियों के अनुरूप ढल जाने का काल था….!!
आज भी इस धरती पर अज्ञातवास जी रहे ना जाने कितने ही महायोद्धा दिखाई देते हैं…. कोई धन्ना सेठ की नौकरी करते हुए उससे बेवजह गाली खा रहा है, क्योंकि उसे अपनी बिटिया के स्कूल की फीस भरनी है !
बेटी के ब्याह के लिए पैसे इकट्ठे करता बाप…. एक सेल्समैन बन कर दर दर के धक्के खा कर सामान बेचता दिखाई देता है !
ऐसे असंख्य पुरुष निरंतर संघर्ष से हर दिन अपना सुख दुःख छोड़ कर अपने परिवार के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं !
फैक्ट्री के बाहर खड़ा गार्ड…… होटल में रोटी परोसता वेटर….. सेठ की गालियां खाता मुनीम……
वास्तव में कंक, बल्लभ और बृह्नला हैं ।
क्योंकि कोई भी अपनी खुद की मर्ज़ी से संघर्ष या पीड़ा नहीं चुनता, वे अज्ञातवास जी रहे हैं……!
परंतु वह अपमान के भागी नहीं हैं, वह प्रशंसा के पात्र हैं !
यह उनकी हिम्मत है….. उनकी ताकत है….. उनका समर्पण है कि विपरीत परिस्थितियों में भी वह डटे हुए हैं….!
वह कमजोर नहीं हैं…… उनके हालात कमज़ोर हैं….. उनका समय कमज़ोर है ।
याद रहे……
अज्ञातवास के बाद बृहन्ला जब पुनः अर्जुन के रूप में आए तो कौरवों का नाश कर दिया ! पुनः अपना यश, अपनी कीर्ति सारे विश्व में फैला दी ! वक्त बदलते वक्त नहीं लगता, इसलिए जिसका वक्त खराब चल रहा हो उसका उपहास और अनादर ना करें !
उसका सम्मान करें, उसका साथ दें, उनका भरपूर सहयोग करिए, उनके ईमानदार प्रयासों को सराहिए !
क्योंकि एक दिन प्रत्येक संघर्षशील, कर्मठ, ईमानदारी से प्रयास करने वाले व्यक्ति का अज्ञातवास अवश्य समाप्त होगा……
यही नियति है….
यही समय का चक्र है….