जिला उपभोक्ता आयोग ने मुकेश अम्बानी को जारी किया नोटिस!

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रिपोर्ट- संतोष तिवारी!

परिवादी ने अम्बानी के कंपनी पर 10 लाख 30 हजार रूपये का ठोका दावा!

आयोग ने मुकेश अम्बानी को 29 अक्टूबर को हाजिर होने को कहा!

परिवादी की ओर से मानवाधिकार अधिवक्ता एस.के.झा कर रहे हैं मामले की पैरवी!

मुजफ्फरपुर – जिले के ब्रह्मपुरा थाना क्षेत्र के जुरन छपरा रोड नं. 5 निवासी विवेक कुमार ने आईडिया के सिम को जियो में लगभग 5 वर्ष पूर्व पोर्ट कराया था। तब से लेकर आज तक वे जियो के नियमित उपभोक्ता हैं। उनके द्वारा समय- समय पर नंबर को रिचार्ज भी कराया जाता है। कुछ माह पूर्व शिकायतकर्ता के नंबर को जियो कंपनी द्वारा बंद कर दिया गया। जब इन्होंने जियो कंपनी के अधिकृत कार्यालय में जाकर शिकायत किया तो कंपनी द्वारा टालमटोल किया जाने लगा। बताते चले कि शिकायतकर्ता द्वारा जब आईडिया कंपनी का सीम लिया गया और उसे जियो में पोर्ट करवाया गया तो उस वक्त शिकायतकर्ता द्वारा सभी सम्बंधित कागजातों को जमा करवाया गया लेकिन जियो कंपनी द्वारा शिकायतकर्ता का सिम बिना किसी कारण और बिना सूचना दिए अचानक से बंद कर दिया गया। शिकायतकर्ता ने जब अपने नंबर का स्टेटमेंट निकलवाया तो मालूम हुआ कि शिकायतकर्ता जियो का प्राइम मेंबर 25 मई 2025 तक है और समय-समय पर नंबर को लगातार रिचार्ज करवा रहा है। बावजूद इसके शिकायतकर्ता का मोबाइल नंबर कंपनी द्वारा बंद कर दिया गया। काफी परेशान होने के बाद शिकायतकर्ता ने मानवाधिकार अधिवक्ता एस.के.झा के माध्यम से जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष परिवाद दायर कराया, जिसपर सुनवाई करते हुए जिला उपभोक्ता आयोग ने रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अध्यक्ष मुकेश अम्बानी और मुजफ्फरपुर के जियो कार्यालय के शाखा प्रबंधक के विरुद्ध नोटिस जारी किया। इन दोनों को आयोग ने 29 अक्टूबर को आयोग के समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया है। शिकायतकर्ता ने बताया कि उक्त मोबाइल नंबर मेरे कार्यक्षेत्र से जुड़े सभी लोगों के पास है। उक्त मोबाइल नम्बर नहीं रहने के कारण शिकायतकर्ता को आर्थिक, मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान होना पड़ रहा है। जिस कारण शिकायतकर्ता ने मुकेश अम्बानी की कंपनी जियो पर 10 लाख 30 हजार रूपये का दावा भी किया है। मामले के सम्बंध में अधिवक्ता एस.के.झा ने बताया कि यह पूरा मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के सेवा में कमी की कोटि का मामला है। उन्होंने बताया कि मामले में सेवा प्रदाता कंपनी ने उपभोक्ता को सेवा प्रदान करने में विफल रही है, जिस कारण उपभोक्ता को आयोग में परिवाद दाखिल करना पड़ा है।

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