Search
Close this search box.

सूबे में तय दर से दोगुने पर बिक रहा बालू, निर्माण कार्य सुस्त, बढ़ी बेरोजगारी!

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

:- रागिनी शर्मा !

सरकार द्वारा बालू के लिये लाये गये नये नियम के बाद अब तय मूल्य से ज्याद ग्राहकों को कीमत चुकानी पड़ रही है.बालू की निर्धारित कीमत से अधिक राशि वसूलने के कारण ब्रॉडसन कंपनी पर करोडो रुपये का जुर्माना होने के बाद भी कीमत पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है.सूबे में बालू की कीमत आसमान छू रही है.जिला प्रशासन द्वारा तय होने के बाद भी बालू की मनमानी कीमत वसूली जा रही है.हर जगह इसकी कीमत तय कीमत से दोगुना वसूला जा रहा है।

जबकि जिला स्तरीय समिति ने बालू की कीमत 4027 रुपए प्रति 100 सीएफटी तय कर रखी है. इसके साथ ही लोडिंग चार्ज 300 रुपए और 201 रुपए कमीशन तय है.इस तरह कमीशन और लोडिंग चार्ज मिलाकर 100 सीएफटी बालू के लिए 4528 रुपए देने हैं ये सरकारी निर्देश है। इसके अलावा 35 रुपए प्रति किमी की दर से भाड़ा अलग से देना है। अगर इस सरकारी रेट से तुलना करें तो घर तक पहुुंचाकर दोगुना से अधिक पैसा वसूला जा रहा है.इस कारण सूबे में चल रहे निर्माण कार्य सरकारी और निजी दोनो निर्माण कार्यों पर व्यापक असर पड़ा है.इस संबंध में ठेकेदारों ने बताया कि पहली बार बालू का रेट इतना बढ़ा हुआ है. स्थिती यह है कि साइड पर पहुंचाकर प्रति ट्रैक्टर 09 हजार से 10 हजार रुपए तक लिए जा रहे हैं,एक ट्रैक्टर में 100 सीएफटी बालू आता है.
इससे पहले एक बार 2019 में बालू की कीमत बढ़ी थी। लेकिन उस समय भी अधिकतम कीमत प्रति ट्रैक्टर 7 हजार रुपए तक गई थी। जबकि 2018 में बालू का दर प्रति ट्रैक्टर 3500-5000 रुपए तक था। तीन से चार साल में बालू की कीमत प्रति ट्रैक्टर दोगुनी से अधिक हो गई है. इसका प्रभाव शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक पड़ा है परिणामस्वरूप ठेकेदार टेंडर लेकर भी निर्माण करने में टालमटोल कर रहे हैं,तो आम लोगों ने गृह निर्माण कार्य को स्थगित कर दिया है। बिहार में दर्जनों मेगा प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, जिसमे पुल निर्माण, सड़क निर्माण समेत विभिन्न क्षेत्र के निर्माण शामिल हैं जिनकी रफ्तार धीमी पड़ गई है।
वही ट्रैक्टर चालकों और ट्रांसपोर्टरों ने बताया कि सोन से बिहटा लाने का किराया सरकार देगी।स्टॉक पर ही सरकारी रेट के ढेड़ गुना रेट पर बालू दिया जा रहा है,यानी बेईमानी का ये खेल स्टॉक पॉइंट से शुरू हो जाता है इसके साथ ही डीजल और चालान के खर्च के अलावा पुलिस काे भी देना पड़ता है .जिसके वजह से प्रति 100 सीएफटी 6 से 7 हजार रुपये खर्च पड़ रहा है,इसलिय सरकारी दर पर उपलब्ध कराना नामुमकिन है।
कुल मिलाकर सरकार ने बालू की कीमत तो तय कर दी पर सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में असफल रही और बालू की कीमत मौजूदा वक्त में दोगुने से अधिक हो गया। सरकार को चाहिये कि वो ट्रांसपोर्टरों की भी सुनें, जबतक वाहन मालिकों नही सुनी जायेगी, कीमत नियंत्रण से बाहर ही रहेगी। और प्रदेश का विकास कार्य यूँ ही सुस्त पड़ा रहेगा।
बढ़ती बालू की कीमत से बालू की बिक्री पर असर पड़ा है और बिक्री काफी कम हो गई है, इस कारण बालू या निर्माण कार्यों से जुड़े सारे व्यवसायों पर व्यापक असर पड़ा है।
सीमेंट,स्टील, मार्बल, स्टोन, हार्डवेयर और निर्माण कार्य से जुड़े सभी व्यापार मंदी की मार झेल रहे हैं।
जिससे सूबे में अचानक लाखों लोग बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं।
अब ये जिम्मेदारी सरकार की है कि समय रहते इस समस्या का समाधान करे या इस जख्म के नासूर हो जाने का इंतजार करे।

Leave a Comment

और पढ़ें