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पंथ निरपेक्षता की दुहाई देनेवाले बॉलीवुड में धर्म का उड़ाया जाता है खुलेआम मज़ाक !

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:- अनुपम लाड़

अनुपम लाड़( लेखक निजी चैनल में बिहार झारखंड के प्रभारी है नोएडा में)

धर्म ! भारत जैसे देश में यह सिर्फ एक शब्द नहीं, यह व्यक्तियों के जीने का आधार है, धर्म भावना है , धर्म संवेदनशीलता है , धर्म सौभाग्य है और धर्म ही जीवन का मर्म है। एक और जहां भारत अपने आप को धर्म निरपेक्ष कहता है, वहीं दूसरी और भारत में लगातार धर्म के नाम पर छोटी छोटी कम्युनिटी ने अपनी ही इंडस्ट्री स्थापित कर ली है। ऐसा कहा जाता है कि हम जो देखते है वही हम सीखते है, वहीं हम आत्मसार भी करते है।
आस्थाओं का खंडन करता बॉलीवुड।

हमेशा से ही कहीं ना कहीं इन इंडस्ट्रियों ने सिर्फ एक ही पहलु की तरफ़दारियां की है, और इनमे सबसे ज़्यादा हाथ हमारे मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन बॉलीवुड है। बॉलीवुड की शुरुआत से ही लगातार यह एक धर्म का खंडन करता आ रहा है। ऐसी कई फिल्में बनी है, जो सिर्फ और सिर्फ एक पहलु दिखाती आई है । कई फिल्मे ऐसी भी है जो आतंकवाद तक को सही साबित करती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार कुछ यूँ पाया गया की करीब 60 % फिल्मे ऐसी है जो किसी धर्म विशेष को टारगेट कर उसकी आस्था पर आरोप-प्रत्यारोप लगाती आई है।

2014 के बाद से बढ़ता सिलसिला

अगर इसे राजनैतिक तौर पर या उससे जोड़ कर देखा जाए तो यह सिलसिला 2014 के बाद से कुछ ज़्यादा ही रफ़्तार से बढ़ रहा है। इसे हम कई नज़रियों से
देख सकते है। किसी गैंगस्टर की फिल्मों में विलन का तिलक लगाकर घूमना हो या किसी फिल्म में आर्मी के जवानो को गोली मारना हो , या फिर किसी फिल्म में आतंकवाद का औचित्य साबित करना हो, और या फिर किसी फिल्म में कोई खास धर्म की आस्थाओं के साथ छेड़छाड़ करना हो, उसका मज़ाक उड़ाना हो। कहीं ना कहीं बॉलीवुड सिर्फ और सिर्फ एक ही पहलु दिखाने में सक्षम रहा है। किसी धर्म विशेष की परम्पराओं के पीछे का कारण आज तक कहीं नहीं बताया गया।

बोलने की आज़ादी का गलत फ़ायदा

ऐसा भी देखने को मिला है की सिर्फ और सिर्फ एक ही एक ही वर्ग ऐसा काम लगातार कर रहा है। और उसने सिर्फ एक ही धर्म को टारगेट किया है।
ऐसा भी देखा गया है की जब-जब इसका विरोध हुआ तब-तब इसके विरोध को ही निराधार करार कर दिया गया। बोलने की आज़ादी के नाम पर लगातार सिर्फ एक धर्म के प्रति हो रहे ऐसे व्यवहार को आज भी बहुत से लोग जायज़ मानते है और शायद यह लोग भी वही नीची सोच रखने वाले में से है। देखना यह है की यह सिलसिला कब तक जारी रहेगा। क्या कोई भी इस काम के खिलाफ ठोस आवाज़ उठा पायेगा ? जवाब मुश्किल है परन्तु संभव है।

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