रिपोर्ट- निभाष मोदी
भागलपुर,आस्था, विश्वास और परंपरा का अद्भुत संगम उस समय देखने को मिला जब अररिया जिले के पलासी, चौसा और आसपास के कई गांवों से हजारों ग्रामीण भागलपुर के बरारी स्थित प्रसिद्ध सीढ़ी घाट पहुंचे। इस अवसर पर उन्होंने सामूहिक रूप से गंगा स्नान किया और अपने गांवों में पिछले तीन वर्षों से पूजित विषहरा भगवान के कलशों का विधिपूर्वक विसर्जन किया।
बीमारी से मुक्ति की सामूहिक यात्रा
ग्रामीणों के अनुसार, लगभग तीन साल पहले गांव में अचानक अज्ञात बीमारियों जैसे बुखार, चेचक और अन्य संक्रमणों ने भयावह रूप ले लिया था। इन हालातों को बुरी आत्माओं का असर मानकर गांव के बुजुर्गों की सलाह पर विषहरा भगवान की पूजा शुरू की गई। पूजा में आस्था रखने वाले ग्रामीणों ने बताया कि यह पूजा गांव की रक्षा और बीमारियों से मुक्ति के उद्देश्य से की जाती है। अब जब गांव पूरी तरह स्वस्थ हो गया है, तो ग्रामीणों ने इसे ईश्वर की कृपा मानते हुए सामूहिक गंगा स्नान और कलश विसर्जन का आयोजन किया।
श्रद्धा और जश्न का माहौल
पूजा की पूर्णता के बाद पूरे गांव की भावनाएं एक साथ उमड़ पड़ीं। ढोल-नगाड़ों की धुन पर नाचते ग्रामीणों ने गंगा के तट पर भक्ति और उत्साह के साथ कलश विसर्जन किया। महिलाएं पारंपरिक वस्त्रों में सजी थीं और हर किसी के चेहरे पर संतोष और श्रद्धा की झलक थी।
ग्रामीण रुपेश कुमार मंडल ने बताया, “जब गांव में बीमारी फैली थी, तब हमने पूजा शुरू की थी। आज जब सब स्वस्थ हैं, तो ईश्वर को धन्यवाद देने आए हैं।”
पूनम देवी (लाल साड़ी) ने कहा, “भगवान ने हमारी सुन ली। आज का दिन हमारे लिए उत्सव जैसा है।”
पूजा कुमारी (ग्रे साड़ी) ने कहा, “यह पूजा सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि हमारे गांव की एकता और विश्वास का प्रतीक है।”
अंधविश्वास या परंपरा?
हालांकि इस आयोजन ने एकता और श्रद्धा का परिचय दिया, लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या इस आधुनिक युग में भी इस तरह की पूजा अंधविश्वास का प्रतीक है? हाल ही में पूर्णिया जिले में इसी प्रकार के विश्वास के चलते पांच लोगों की जान चली गई। ऐसे में यह सोचने की जरूरत है कि क्या हर परंपरा सही मायनों में सकारात्मक है?
प्रशासन रहा सतर्क
गंगा घाट पर बड़ी संख्या में लोगों की मौजूदगी को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे। किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए पुलिस बल और स्वास्थ्य कर्मियों की तैनाती भी की गई थी।
यह आयोजन ग्रामीण आस्था की शक्ति, एकता और सामाजिक समर्पण का एक जीवंत उदाहरण है, जो यह दर्शाता है कि समुदाय की सामूहिक भावना किसी भी कठिन समय को पार कर सकती है – चाहे वह आस्था हो या स्वास्थ्य संकट।