:- शशि झा

नागपंचमी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, नागों की माता कद्रू ने अपनी शौतन विनता को धोखा देने के लिए अपने पुत्रों को आज्ञा दी. परंतु कद्रू के पुत्रों ने माता की आज्ञा की अवहेलना करते हुए सौतेली मां को धोखा देने से मना कर दिया. इससे माता कद्रू ने नागों को शाप दे दिया. माता के शाप से नाग जलने लगे. यह दिन सावन मास के शुक्ल की पंचमी तिथि थी.
नाग भागते हुए ब्रह्मा जी के पास गए. तब ब्रह्मा जी ने श्रावण मास की शुक्ल पंचमी को ही नागों को वरदान दिया कि तपस्वी जरत्कारु नाम के ऋषि का पुत्र आस्तिक नागों की रक्षा करेगा.
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार-
नाग पंचमी के दिन नाग पूजा को लेकर भविष्य पुराण के पंचमी कल्प में एक रोचक कथा मिलती है। कथा के अनुसार, राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए के फैसला किया था। राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के काटने से हुई थी इसलिए जनमेजय ने यज्ञ से संसार के सभी सांपों की बलि चढ़ाने का निश्चिय किया।
राजा जनमेजय का यज्ञ इतना शक्तिशाली था कि उसके प्रभाव से सभी सांप अपने आप खिंचे चले आते थे। तक्षक नाग इस यज्ञ के भय से पाताल लोक में जाकर छिप गए। राजा जनमेजय ने भी तक्षक नाग की मृत्यु के लिए यह यज्ञ शुरू किया थे लेकिन काफी देर बाद तक तक्षक नाग नहीं आए तब राजा ने ऋषियों और मुनियों यज्ञ में मंत्रों की शक्तियों को बढ़ाने को कहा, जिससे तक्षक नाग यज्ञ में आकर गिर जाएं।
मंत्रों की वजह से तक्षक नाग यज्ञ की ओर खिंचे चले जा रहे थे। उन्होंने सभी देवताओं से जान बचाने का आग्रह किया। तब देवताओं के प्रयास से ऋषि जरत्कारु और नाग देवी मनसा के पुत्र आस्तिक मुनि नागों को हवन कुंड में सांपों को जलने से बचाने के लिए आगे आए। ब्रह्माजी के वरदान के कारण आस्तिक मुनि ने जनमेजय के यज्ञ का समाप्त करवाकर नागों के प्राण बचा लिए थे।