रवि शंकर शर्मा की रिपोर्ट!
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सातवीं बार शपथ लेने के साथ ही सी एम विवादों में घिर गये हैं। ना सिर्फ विपक्ष हमलावर है बल्कि एक पूर्व आई पी एस अधिकारी ने भी मुख्यमंत्री की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करते हुये राज्य के पुलिस महानिदेशक से जाँच करवाने के लिये पत्र तक लिख दिया है जिसने इस मामले में आग में घी का काम किया है।
दरअसल सारा विवाद शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही शुरू हो गया, जैसे ही मंत्री के रूप में जदयु कोटे से तारापुर विधायक मेवालाल ने मंत्री पद की शपथ ली, विपक्ष हमलावर हो गया।
विपक्ष के अनुसार मेवालाल नियुक्ति घोटाले के आरोपी हैं, ऐसे में सुशासन की छवि को बरकरार रखने में नीतीश कुमार की छवि पर गहरा धक्का लगते नजर आ रहा है।
पूर्व आईपीएस अमिताभ दास ने पुलिस महानिदेशक से मेवालाल मामले की जाँच कराये जाने का अनुरोध करते हुये पत्र लिखा है।
अमिताभ दास ने मेवालाल की पत्नी की मौत को राजनीतिक करार देते हुये उसकी जाँच कराये जाने की भी माँग की है।
राजद पहले से मेवालाल को लेकर हमलावर है, इस मामले को लेकर सुशासन बाबु की भारी किड़कीड़ी और फजीहत शुरू हो गई है।
परन्तु मजबूरी जातिगत समीकरणों की है,जहाँ अब राजनीति में छवि ,नैतिकता आदि सिर्फ कहने की बात रह गई है। एक तरफ भाजपा ने जहाँ कैबिनेट गठन में जातिगत समीकरणों को साधने की भरपूर कोशिश की तो दूसरी तरफ जदयु ने भी कोई कसर बाकी नही रखी। आने वाले समय मे मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान भी जातिगत समीकरण ही हावी रहेगा।
सरकार को घिरते देख भाजपा ने अपना दामन बचाने का प्रयास किया और प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने भी कह दिया कि भ्रष्टाचार के मामले में सरकार जीरो टोलरेंस की नीति पर काम करेगी! परन्तु ये सिर्फ कहने से भाजपा अपना दामन नही बचा सकती जबतक मेवालाल मंत्री पद से हटा नही दिये जाते।
हालाँकि मेवालाल पर जदयु के तरफ से कोई प्रतिक्रिया सामने नही आई है, जो भी कमेंट सामने आ रहे हैं वो सिर्फ डिफेंसिव हैं।
क्योंकि फिलहाल जदयु के अंदर किसी नेता की इतनी ताकत नही है जो नीतीश कुमार के विरोध की क्षमता रखता हो। और इन सबके बीच नीतीश कुमार के लिये सुशासन बाबु की छवि को बचाये रखने की चुनौती है तो फिलहाल मेवालाल को मंत्रालय आवंटित करते हुये शिक्षा मंत्री का दायित्व सौंपा गया है जिसे देखते हुये ऐसा लगता नही की मेवालाल मामले में मुख्यमंत्री कोई सख्त निर्णय लेकर अपने सुशासन बाबु की छवि को बरकरार रख पायेंगे, क्योंकि बिहार की राजनीति में जिसने जातिगत समीकरण को साधना सीख लिया वही सफल राजनेता है। ये जातिगत समीकरण की ही मजबूरी है जो मेवालाल जैसे नेता को शिक्षा मंत्री जैसा अहम मंत्रालय दिला देने का सामर्थ्य रखता है। बाकी मुख्यमंत्री हों या अन्य नेता सबको मालूम है कि जनता कोई बात या विवाद तभी तक याद रखती है जबतक दूसरा कोई विवाद सामने नही आ जाता!