शंकर दयाल मिश्रा के साथ पंकज कुमार ठाकुर

विश्लेषण
क्या लोजपा में हुई घटना को भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में #तख्तापलट की बुनियाद मानी जाए। हम #तख्तापलट शब्द को खबरों में लिख-पढ़ और सुन रहे हैं।
आज की खबर है, पटना लोजपा कार्यालय पर पारस गुट का #कब्जा। जमीन पर कब्जा, घर पर कब्जा… इससे गुजरते हुए हम कब्जा शब्द और किसी की संपत्ति पर दबंगों के कब्जे की घटनाओं को स्वीकार कर चुके हैं।
लेकिन तख्तापलट…! दूसरी पार्टियों के नेता और विद्वतजन लोजपा में तख्तापलट को उसकी अंदरूनी घटना बता रहे हैं। पर बात अंदरूनी कहाँ? बात एक राजनीतिक दल की है। मुझे लगता है कि राजनीतिक दल हमारे देश में लोकतंत्र का प्रकटीकरण माने जाते हैं। इसके बाद भी हम धीरे-धीरे #तख्तापलट शब्द को सहजता से स्वीकार करते जा रहे हैं।
यह बात चिंतित कर रही है। अभी शब्द स्वीकार कर रहे हैं, फिर तख्तापलट जैसी घटनाओं को स्वीकार करेंगे।
आज एक पार्टी से शुरू हुई #तख्तापलट की घटना को #संविधान की कसौटी में तत्काल नहीं कसा गया तो यह हमारे संवैधानिक व्यवस्था की ही बलि लेगा।
ध्यान रहे कि अब तक पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में #तख्तापलट हम सुनते-देखते आये हैं, लेकिन हमारा लोकतंत्र अब तक इतना मजबूत है कि ऐसी कोई सोच हम तक फटक नहीं पाई थी। लेकिन जब देश के अंदर इसकी शुरुआत हो जाये तो हमारे संवैधानिक संस्थाओं के शीर्ष पर बैठे लोगों को हमारे संविधान की रक्षा के लिए अतिरिक्त रूप से सजग होना चाहिए।




