कार्यकारी संपादक पंकज कुमार ठाकुर

रैलियों से लेकर बैठकों में भी जमकर उड़ाई जाती है कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां!
देश दुनिया भले ही कोरोना से हलकान है लेकिन उन तारणहार और कृपा निधान का क्या जो कानून से सदा छूट ले लेते हैं ।और अब उनकी हैसियत कानून से ऊपर होता दिख रहा है ।इसको कोरोना का अखंड में शिक्षा के ऊपर फिर से काले बादल मंडरा गए और अपने तारणहार ने आनन-फानन में शैक्षिक खेमे में फुलिस टॉप लगा दिया। मास्क नहीं लगाने वाले जनता से दनादन जुर्माना वसूला जा रहा है। समाज से लेकर शहरी क्षेत्र में होने वाले हर उत्सव पर नियंत्रण लगा दिया गया है। ऐसे में जनता भी समझ रही है सुरक्षा ही सबसे बड़ा तंत्र है। लेकिन अपने उन कृपा निधान का क्या जो इस कोरोना काल में भी प्रेस कॉन्फ्रेंस , बैठक से लेकर रैलियों का दौर जारी रखे हुए हैं। और सोशल डिस्टेंस मास्क का पाठ पढ़ाने वाले नेता जी से लेकर मंत्री जी तक चुनावी वैतरणी पार करने के लिए पुरवइया हवा के साथ अपने नैया को पार करने की जुगत पर लगे हुए हैं। जहां कोरोना के प्रोटोकॉल की जमकर धज्जियां ही नहीं उड़ाई जाती है। बल्कि उन नियमों को भी तार-तार किया जाता है। तो क्या कोरोना का प्रोटोकॉल सिर्फ आम जनता के लिए है। और अगर ऐसा है तो फिर यह कैसा लोकतंत्र जहां तंत्र सिर पर तांडव कर रहा है। तो लोग सबसे निचले पायदान पर पांव के नीचे हैं। दरअसल अगर आप आंकड़ों पर गौर करें तो कोरोना का महामारी विस्फोटक रूप फिर से लेते जा रहा है कहीं ना कहीं यह कमियों का ही नतीजा है।