राजनीति और साहित्य के समन्वयक शब्द-शिल्पी थे साहित्यकार रामेश्वर

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नीरज कुमार की रिपोर्ट

रचनाओं के माध्यम से जनपद में एक मजबूत जनवादी परंपरा को रामेश्वर प्रशांत ने कायम किया,उनकी कृति समय का दर्पण है- कवि

रामेश्वर प्रशांत की तीसरी स्मृति दिवस पर शिक्षाविदों ने किया याद।

बरौनी

गढ़हरा दर्पण परिवार ने जनपद के लब्धप्रतिष्ठ एवं वरिष्ठ साहित्यकार कविवर रामेश्वर प्रशांत का तीसरा स्मृति दिवस मनाया।कार्यक्रम की अध्यक्षता अवकाश प्राप्त शिक्षक मुक्तेश्वर वर्मा एवं संचालन ने की जबकि रंजीत कुमार सिंह ने किया।इस अवसर पर जनवादी लेखक संघ बिहार सचिव कुमार विनीताभ ने कहा कि कविवर रामेश्वर प्रशांत अपनी कविता को इतिहास बदलने की मशीन का पुर्जा बनाने में विश्वास करते थे।वे वैचारिक रूप से मनुष्यता के लिए प्रतिबद्ध साहित्यकार थे।वे राजनीति और साहित्य के समन्वयक शब्द-शिल्पी थे।जलेस बेगूसराय के सचिव राजेश कुमार ने स्मृति स्वरूप कहा कि प्रशांत जी ने अपनी रचनाओं के द्वारा जनपद में एक मजबूत जनवादी परंपरा कायम किया।उनकी कृति समय का दर्पण है।दिनकर पुस्तकालय सिमरिया के सचिव संजीव फिरोज ने कहा कि प्रशांत जी फक्कड़ और अक्खड़ साहित्यकार थे नई पीढ़ी के कवियों के प्रति वे सहज स्नेहिल व्यवहार करते थे।सीपीआई (एम) के वरिष्ठ नेता रमेश प्रसाद सिंह ने कहा कि प्रशांत जी किसानों और मजदूरों के संघर्षों के साथी साहित्यकार थे।वे मन,वचन और कर्म से एक समान थे।वर्तमान हालात में उनकी शिद्दत से कमी महसूस होती है मैथिली कवि श्यामनंदन निशाकर एवं युवा कवि विनोद बिहारी ने अपनी कविताओं के द्वारा उनको श्रद्धांजलि अर्पित किया।वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता रामचन्द्र सिंह,विजय कुमार राय,चन्द्रदेव राय,प्रधानाध्यापक चन्द्र कुमार, रमेश कुमार शर्मा,मुकेश कुमार मिश्र,संजय कुमार,प्रेम कुमार समेत कई शिक्षकों एवं बुद्धिजीवियों ने कवि के प्रति अपने अपने विचार व्यक्त किये। शीतांशु भास्कर ने धन्यवाद- ज्ञापित किया।इस मौके पर कुमार श्वेताभ,प्रमोद चौधरी,कुन्दन कुमार,मनोज दास,रणजीत कुमार दास,उदय कुमार,मनोरंजन कुंवर सहित अन्य साहित्य प्रेमी मौजूद थे।

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