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पटना:-तो क्या खत्म हो जाएगा,300 पंचायतों का अस्तित्व?

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पंकज कुमार ठाकुर

बिहार में गठित होने वाली नई ग्राम पंचायतों में इस बार आरक्षण की स्थिति क्या होगी, इसको लेकर पंचायती राज विभाग में मंथन शुरू हो गया है। अप्रैल-मई में ग्राम पंचायत चुनाव होने हैं। ऐसे में नयी ग्राम पंचायतों में आरक्षण क्या होगा, इस पर शीघ्र निर्णय लिये जाएंगे। पंचायत चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है। अभी मतदाता सूची पर काम हो रहा है।

300 ग्राम पंचायतें अब नहीं रहेंगे!

गौरतलब हो कि 117 नये नगर निकायों के गठन और कइयों के विस्तार से करीब 300 ग्राम पंचायतें अब नहीं रहेंगी। वहीं कुछ ग्राम पंचायतों का नये सिरे से गठन होगा, क्योंकि इन पंचायतों का अधिकतर हिस्सा नगर निकाय में गया है, पूरा नहीं। पंचायती राज अधिनियम के अनुसार किसी भी पंचायत-वार्ड में लगातार दो चुनावों के लिए आरक्षण लागू रहता है। वर्ष 2016 के पंचायत चुनाव में सीटों के आरक्षण बदले गए थे।

इसलिए इसबार के चुनाव में पंचायतों के आरक्षण में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। पर, जो नयी पंचायतें होंगी, सिर्फ उनके लिए सरकार निर्णय लेगी। इसके लिए क्या नियमावली होगी, यह तय किया जाएगा। इसके बाद सभी जिलों को विभाग की ओर से दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे। फिर उसी के आधार पर नयी पंचायतों में चुनाव कराए जाएंगे।

दिल के अरमां आंसुओं में बह गए!

दरअसल 300 पंचायत को खत्म करने के बाद लाजमी है 300 मुखिया जी के माथे पर पसीना आना साहेब की 5 साल तो ठीक-ठाक चला लेकिन अब जब पंचायत चुनाव मुहाने पर है। मुखिया जी पिछले 9 माह से जी तोड़ मेहनत करके अपनी धरती बनाने में लगे हुए थे, लेकिन बेचारे को सर मुंडवाते ही ओले पड़ने शुरू हो गए, और राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इस बार कई मुखिया जी के दिल के अरमां आंसुओं में बह गए!

गांव गांव मोहल्ले मोहल्ले में बिछने लगी पंचायत चुनाव की बिसात!

विधानसभा चुनाव समाप्त होते ही पक्ष और विपक्ष दोनों के वर्तमान मुखिया अलर्ट मोड में है जबकि कई मुखिया जी को यह चिंता खाए जा रही है कि उनकी सत्ता में सरकार जरूर है लेकिन विधायक जी इस बार नहीं है और ऐसे मुखिया जी अब गांव-गांव लोगों से जाकर आधार कार्ड राशन कार्ड और वोटर लिस्ट बटोर रहे हैं।भोली-भाली जनता का मुखिया जी कभी इंदिरा आवास में नाम जुड़वा रहे हैं। तो कभी वृद्धा पेंशन में तो कभी सरकारी योजनाओं में जुड़वाने का वादा कर रहे हैं। साहब साडे 4 साल गहरी नींद में थे ऊपर से इस बार किस्मत भी दगा दे गई, अब ऐसे में मुखिया जी खुद घर-घर संपर्क साधने में व्यस्त हो गए हैं। शायद फिर किस्मत साथ दे जाए।

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