रिपोर्ट- अनमोल कुमार
धतूरा को अन्य भाषाओं में मदन, उन्मत्त, शिवप्रिय, महामोही, कृष्ण धतूरा, खरदूषण, शिवशेखर, सविष, कनक, धुतूरा, सादा धुतूरा, धोत्रा, काला धतूरी, जन्जेलमापिल, ततूर, दतुरम, (stramonium) आदि नामो से जाना जाता है। ये एक क्षुप जाति की वनस्पति है। इसके पत्ते बड़े डंठल युक्त, नोकदार, अण्डाकृत होते है। इसके फूल घंटे के आकार के होते है, फूल का रंग बीच में सफ़ेद होता है। इनमे पांच पंखुडिया होती है।इसके फल गोल, कांटेदार और भीतर बहुत बीजो वाला होता है। इसके वनस्पति के सूखे पत्ते और बीज औषधि प्रयोग के काम आते है। इसके बीज कालेपन लिए भूरे रंग के, चपटे, खुरदरे और कड़वे होते है। इनमे कोई सुगंध नहीं होती, मगर कूटने पर एक प्रकार की उग्र गंध आती है।
पहले दमा इंहेलर का आविष्कार भी महर्षि सुश्रुत जी ने ही किया यज्ञ में आहुतियां डालते वक्त उठने वाली कपूर लौंग धूर्तर के धूमपान से जब पास बैठे दमा रोगी को राहत मिली तो उन्होंने सूक्ष्म धूणी यानि चिलम बनवाई जिससे रोगी को सीधे धूमपान करवाया जा सके
उन्मत्त (धतूरा)नामक औषधी के गुणों से परिचित महर्षि सुश्रुत जी जानते थे की श्वास रोगों को नियंत्रण और पूर्ण उपचार की शक्ति है परंतु एकाएक आए दमा अटैक को कैसे शांत किया जाए क्योंकि औषधपान के बाद रोगशांति में समय लगता था !
अस्थमा के रोगियों के लिए धतूरे का प्रयोग रामबाण हैं इसके लिए बराबर मात्रा में धतूरे की पत्तियों व फल को सुखाकर कूट ले फिर फिर उस मिश्रण को मिटटी की हण्डिया मेंभरकर कपड़े से हण्डिया के मुंह को बंदकर उपर से मिटटी लगाये उपले कोयले या लकड़ी के अंगारे पर इस पात्र को रखे जब पतियाँ और फल जलकर भस्म बन जाये तो उसेउतार कर रख ले फिर इसकी आधा ग्राम तक की मात्रा को सुबह शाम शहद के साथ नियमित रूप से चटाए इससे अस्थमा व कफ रोगों में लाभ मिलेगा जिनको अस्थमा का दौरापड़ा हो उस समय पर छाया में सुखाये धतूरे के पत्तो को चिलम में तम्बाकू की तरह से भरकर पिए इससे अस्थमा के रोगियों को तुरंत राहत मिलेगी
आज भी दमा रोग का समूल उपचार करने के लिए महान वैद्य उनमत्त धूम का पान करवाते हैं जिससे दमा अटैक शीघ्र शांत होता है औषधी सीधी श्वसन तंत्र की सफाई करती है पेट में जाने की अपेक्षा शीघ्र कार्य करती है फेफडों में जाकर सूजन में धतूरा के पिसे हर पत्तों में शिलाजीत मिश्रित कर, लेप करने से अंडकोष की सूजन, पेट के अंदर की सूजनम फुफ्फुस के पर्दे की सूजन, संधियों की सूजन और हडिड्यों की सूजन में शीघ्र लाभ होता है।
जोड़ों का दर्द और मांशपेशियों में सूजन में चमत्कारिक लाभ होता
धतूरा नपुंसकता का काल है..
पाताल यंत्र के माध्यम से यदि धतूरे के बीजों का तेल निकाला जाए तो यह शीर्ष हुई मांसपेशियों तथा नसों को नया जीवन देता है तथा नपुंसकता का नाश करता है
जोड़ों के दर्द में भी यह तेल महा गुणकारी है
धतूरा सूजन कम करने छाती तथा श्वसन संस्थान के विकार तथा कृमिनाषक के तौर पर और जूंण्लीखों को नष्ट करने हेतु किया जाता है । धतूरे की ज्यादा मात्रा नषीली और जहरीली होने से जानलेवा होती है । इसका वातवर्धन गुण अधिक मात्रा में सेवन करने से उन्माद आदि के रूप प्रकट होता है । यह स्वयं एक उग्र उपविष होते हुए भी पागल कुत्ते सियार आदि के विष को नष्ट करने की क्षमता रखता है । अत इसे विषनाषक कहा जाता है ।
धतूरे की पत्तियों का रस स्नायु दर्द वातरोग जोड़ों के दर्द में निवारक के तौर पर और सूजन क करने हेतु तथा अंतडियों के व्रणों में उपयोगी है । पत्तियां ट्रोपेन अल्कोलाइड प्राप्त करने हेतु उपयोग में लाई जाती है । पत्तियों की बीड़ी बनाकर या सिगरेट में भरकर पीने से दमा व अस्थमा रोगियों को आराम मिलता है । एट्रोपिन का मुख्य उपयोग आखों के विकार तथा लकवा में होता यह लिम्फैटिक इंफेक्शन है या कार्सिनोमा में भी अद्भुत असर दिखाता है और किसी भी प्रकार के फोड़े गांठ को पिघला कर अशुद्धियों को शरीर से बाहर फेंकने को प्रेरित करता है । यह व्रणों को ठीक करने वाला होता है अभी इसपर कार्य कर रहा हूँ
पश्चिम मेडिसन इंडस्ट्री पागल हुए पड़े हैं शीघ्र रिसर्च पेपर्स प्रकाशित होंगे उनमत्त यानी धतूरे पर! सोचा बता दूं हम सदियों से इसके चमत्कार जानते प्रयोग करते आए हैं
शिव को अर्पित महाऔषधों यज्ञ औषध और महानतम भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिक महर्षि सुश्रुत जी पर मेरा शोध निरंतर जारी है
कम लिखा ज्यादा समझना बहुत लंबा अरूचिकर हो जाएगा,,,