बजट 2025 में कृषि: ग्रामीण समृद्धि और मजबूती का इंजन!

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

:- रवि शंकर अमित!

(नवीन पी. सिंह) (एस के श्रीवास्तव)

विकसित भारत की आकांक्षा के साथ, वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट का उद्देश्य प्रमुख
संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करते हुए लक्षित सुधारों के शुभारंभ के साथ भारत के कृषि
और संबद्ध क्षेत्रों को नवरूप प्रदान करना है। यह बजट किफायती ऋण तक पहुंच बढ़ाने, फसल
बीमा का विस्तार करने, कृषि-मूल्य श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने और 1.52 ट्रिलियन रुपये के
आवंटन के साथ संतुलित क्षेत्रीय विकास की प्राप्ति को प्राथमिकता देता है। बजट की प्रमुख
विशेषताओं में से एक सब्सिडी वाले कृषि ऋण की सीमा को 3 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख
रुपये प्रति किसान करना है, जिसका उद्देश्य वित्तीय समावेशन को व्यापक बनाते हुए किसान
परिवारों को समर्थन देना है। इसके साथ-साथ, सरकार ने वर्ष 2030 तक दालों में आत्मनिर्भरता
हासिल करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। इसके अलावा, बजट में मूल्य संवर्धन को बढ़ावा
देने के लिए खाद्य प्रसंस्करण के लिए प्रोत्साहन के रूप में 109 बिलियन रुपये आवंटित किए
गए हैं। बुनियादी ढांचे और उत्पादकता बढ़ाने के लिए 9 बिलियन डॉलर की पांच वर्ष की निवेश
योजना के साथ मत्स्य पालन क्षेत्र को भी बढ़ावा मिला है। सरकार ने दीर्घकालिक उत्पादकता
और नवाचार को बढ़ावा देने में कृषि अनुसंधान और शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता
दी है। वित्त वर्ष 2025-26 में कृषि अनुसंधान और शिक्षा के लिए बजट 10,466.39 करोड़ रुपये
है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 3.05 प्रतिशत की मामूली वृद्धि को दर्शाता है। यह वृद्धि,
सकारात्मक होते हुए भी, आधुनिक कृषि अनुसंधान की बढ़ती जटिलता और पूंजी-परक स्थिति
को देखते हुए और अधिक पर्याप्त हो सकती थी।
सबसे पहले, इस बजट में संबोधित की गई एक महत्वपूर्ण चिंता खाद्य मुद्रास्फीति है, जो
निरंतर उच्च रही है और यह 2024 के अंत में वर्ष-दर-वर्ष 10 प्रतिशत को पार कर चुकी है।
इससे निपटने के लिए, सरकार ने दालों के शुल्क-मुक्त आयात को बढ़ाया है और मूल्य स्थिरता

को बनाए रखने के लिए चुनिंदा निर्यात प्रतिबंध भी लगाए हैं। हालांकि, न्यूनतम समर्थन मूल्य
(एमएसपी) और खरीद के प्रभावी कार्यान्वयन के माध्यम से दालों के पक्ष में समानता लाना
आवश्यक है।
दूसरा, मौसम की बदलती परिस्थितियों और घटते जल संसाधन जलवायु परिवर्तन के जोखिम
इसमें शामिल हैं। कृषि क्षेत्र में मजबूत बनाने की दिशा में अधिक निवेश की आवश्यकता को
रेखांकित करते हैं। बजट में किसानों को जलवायु उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए सिंचाई, मृदा
स्वास्थ्य प्रबंधन और जलवायु-अनुकूल प्रौद्योगिकियों के उपायों की रूपरेखा दी गई है। ये
हस्तक्षेप दीर्घकालिक और जलवायु-अनुकूल कृषि कार्यप्रणाली की आवश्यकता की बढ़ती मान्यता
को दर्शाते हैं। हालांकि, सरकार प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए और विशेष रूप से कृषि क्षेत्र
में संरचनात्मक सुधारों के माध्यम से दीर्घकालिक अवधि में सूखे को कम करने के लिए अधिक
बजट आवंटित कर सकती थी।
जैविक खेती जैसी योजनाओं के लिए बजट आवंटन के लगभग 50 प्रतिशत वास्तविक व्यय के
साथ, बढ़े हुए बजट स्तरों के साथ योजना को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण चिंतन की
आवश्यकता है जहां राज्यों को जैविक खेती के लिए वस्तुओं की पहचान के लिए शामिल किया
जा सकता है।
तीसरा, यह बजट कृषि और संबद्ध क्षेत्र को बदलने में संघीय व्यवस्था के महत्व पर जोर देता
है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक हस्तक्षेप की आवश्यकता थी, जिसके
परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री धन धान्य कृषि योजना (पीएमडीडीकेवाई) का शुभारंभ हुआ, जिसका
लक्ष्य कम उत्पादकता, मध्यम फसल तीव्रता और औसत से कम ऋण मापदंडों वाले 100 जिले
हैं। इस योजना में स्‍वीकार्यता दृष्टिकोण अपनाया गया है और इसके अंतर्गत 1.67 करोड़ से
अधिक किसानों को शामिल किए जाने की आशा है। कम विकसित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने
से समग्र कृषि विकास पर बहुत कम प्रभाव पड़ेगा।
इस हस्तक्षेप का एक रोचक पहलू पंचायत स्तर पर कटाई के बाद के भंडारण को बढ़ाना है,
जिसका उद्देश्य खेत से लेकर बाजार तक कटाई के बाद के नुकसान को कम करना है। रसद
संबंधी अक्षमताओं को दूर करते हुए भंडारण सुविधाओं में सुधार करके, सरकार बर्बादी को कम
करने और किसानों की आय बढ़ाने का प्रयास करती है।
चौथा, भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था, जहां लगभग 65 प्रतिशत आबादी रहती है, कृषि पर बहुत
अधिक निर्भर है। हालांकि, इस क्षेत्र को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है,

जिसमें छिपी बेरोजगारी (अनुमानित 25-30 प्रतिशत), कम उत्पादकता, अपर्याप्त बुनियादी ढांचा
और जलवायु-जनित बाधाएं शामिल हैं। नीति आयोग के अनुसार, लगभग 40 प्रतिशत किसान
आर्थिक संकट के कारण खेती छोड़ने की इच्छा व्यक्त करते हैं। इसके अतिरिक्त, ग्रामीण
मजदूरी प्रति वर्ष 2-3 प्रतिशत की धीमी गति से बढ़ी है, जबकि भारत में कृषि उत्पादकता
वैश्विक मानदंड से 30-50 प्रतिशत कम है। ये चुनौतियां बड़े पैमाने पर ग्रामीण-से-शहरी प्रवास
में योगदान करती हैं, जिसमें 9 मिलियन से अधिक लोग बेहतर आजीविका की तलाश में
वार्षिक रूप से पलायन करते हैं।
इन दबावयुक्‍त चिंताओं को दूर करने के लिए राज्य सरकारों के सहयोग से एक व्यापक बहु-
क्षेत्रीय ‘ग्रामीण समृद्धि और मजबू‍ती’ कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया है। यह पहल ग्रामीण
क्षेत्रों में स्थायी आजीविका के अवसरों का सृजन करने के लिए कौशल, निवेश और तकनीकी
एकीकरण पर केंद्रित है। कृषि प्रसंस्करण, डिजिटल कृषि और जलवायु-अनुकूल खेती को बढ़ावा
देकर इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण रोजगार को बढ़ाना और यह सुनिश्चित करना है कि
प्रवास आर्थिक मजबूरी के बजाय एक विकल्प बन जाए।
पांचवा, किसी भी पहल को प्रभावी ढंग से लागू करने में राज्यों के साथ केंद्र सरकार की
भागीदारी महत्वपूर्ण है। क्षेत्रीय प्राथमिकताओं की पहचान करने, संसाधन जुटाने और अंतिम-छोर
तक वितरण को सुनिश्चित करने में राज्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक समन्वित
दृष्टिकोण राष्ट्रीय नीति प्रारूप को राज्य-स्तरीय निष्पादन के साथ जोड़ते हुए इसके प्रभाव को
अधिकतम करेगा और समावेशी विकास को सुनिश्चित करेगा। यह सहयोग ग्रामीण परिदृश्य को
बदलने, आर्थिक मजबूती को बढ़ाने और लाखों लोगों के लिए समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने के
लिए महत्वपूर्ण होगा। पीएमडीडीकेवाई से केंद्र-राज्य सहयोग को मजबूत करने और ग्रामीण एवं
कृषि अर्थव्यवस्था में दृढ़ता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की आशा है।
छठा, वित्त वर्ष 2026 का बजट, संस्थानों और लक्षित कार्यक्रमों की स्थापना के माध्यम से कृषि
उत्पादकता, मूल्य संवर्धन और बाजार पहुंच को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रमुख हस्तक्षेपों का
उल्‍लेख करता है। सरकार ने कपास, दालों, फलों और सब्जियों, संकर बीजों पर मिशन बनाने
की घोषणा की है। बिहार में एक मखाना बोर्ड को मखाने के उत्पादन और निर्यात के लिए
समर्थन दिया जाना है, जो इस क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है। इसी तरह, असम

में एक नए उर्वरक संयंत्र से घरेलू उर्वरक उत्पादन को बढ़ाने और आयात पर निर्भरता को कम
करने की उम्मीद है, जो भारत के उर्वरकों में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के अनुरूप है।
इसके साथ-साथ, सब्जियों और फलों के लिए एक व्यापक कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया है,
जिसमें कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे, कोल्ड स्टोरेज और प्रसंस्करण सुविधाओं पर ध्यान
केंद्रित किया गया है। यह कृषि उत्पादन की मांग-आधारित रणनीतियों की सराहना को दर्शाता
है। उच्च उपज वाले बीजों पर राष्ट्रीय मिशन का उद्देश्य बीज प्रतिस्थापन दरों को बढ़ाना और
आनुवंशिक उपज क्षमता में सुधार करते हुए प्रमुख फसलों में उत्पादकता अंतराल को दूर करना
है। कपास की उत्पादकता में स्थिरता को देखते हुए, उच्च घनत्व वाले रोपण, बेहतर कृषि
पद्धतियों और गुणवत्ता वाले बीजों तक बेहतर पहुंच को बढ़ावा देने के लिए कपास उत्पादकता
पर मिशन का शुभारंभ किया गया है।
ये पहल सामूहिक रूप से कम फसल पैदावार, अकुशल आपूर्ति श्रृंखला और मिट्टी में पोषक
तत्वों की कमी जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करते हैं, जबकि वैश्विक सर्वोत्तम
कार्यप्रणाली और तकनीकी प्रगति का लाभ उठाते हैं।
अंत में, भारत का व्यापक लक्ष्य 2030 तक कृषि निर्यात को 80 बिलियन डॉलर तक बढ़ाना है,
जबकि घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए किसानों की आजीविका में सुधार करना है। इसे
प्राप्त करने के लिए, सरकार प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने, व्यापार बाधाओं को कम करने और कृषि-
उद्यमिता को बढ़ावा देने के उपायों को लागू कर रही है। रसद, गुणवत्ता नियंत्रण तंत्र और
वैश्विक बाजार संबंधों को मजबूत करना इस निर्यात लक्ष्य को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाएगा।
कुल मिलाकर, वित्त वर्ष 2025 का बजट कृषि में परिवर्तनकारी बदलावों की दिशा में एक
परिपक्व और दूरदर्शी कदम है। यह संघीय सहयोग, संस्थागत मजबूती और कृषि में
आत्मनिर्भरता जैसी विषयगत प्राथमिकताओं से जुड़े हस्तक्षेपों को रणनीतिक रूप से समेकित
करता है। बजट में की गई वृद्धि कृषि क्षेत्र की प्रणालीगत चुनौतियों का समाधान निकालना,
आर्थिक मजबूती बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में सरकार की प्रतिबद्धता
को दर्शाती है। यह बजट सतत कृषि विकास के लिए सही दिशा तय करता है, जिससे यह

सुनिश्चित होता है कि कृषि भारत में आर्थिक विकास के प्राथमिक इंजन के रूप में कार्य करती
रहे।
(लेखक नवीन पी सिंह, आईसीएआर एनआईएपी, नई दिल्ली में प्रधान वैज्ञानिक हैं और शिवेंद्र
के श्रीवास्तव, आईसीएआर-एनआईएपी में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, लेख में दिए गए विचार उनके
निजी हैं)

Leave a Comment

और पढ़ें