राइट टू हेल्थ बिल का डॉक्टर्स करेंगे 27 मार्च को काली पट्टी लगाकर विरोध!

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कैमूर/भभुआ(ब्रजेश दुबे):

राजस्थान सरकार द्वारा पारित राइट टू हेल्थ बिल लिया जाये वापस

राष्ट्रीय आईएमए के आह्वान पर राजस्थान सरकार द्वारा पारित ‘ राइट टू हेल्थ ‘ बिल के बिरोध में 27 मार्च को कैमूर जिले सहित पूरे देश के डॉक्टर काली पट्टी लगाकर विरोध प्रदर्शन करेंगे। इसको लेकर डॉ संतोष कुमार सिंह, संयुक्त सचिव आईएमए बिहार राज्य ने प्रेस रिलीज जारी किया है। जिसमें बताया है कि बिल का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे राजस्थान के डॉक्टरो पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज करने से कैमूर सहित पूरे देश के डॉक्टरो में रोष है। बिहार के पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज के फार्माकोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ संजय कुमार पिछले पच्चीस दिन से संदिग्ध अवस्था में गायब है। जिन्हें अबतक बिहार पुलिस अब तक ढूँढ नहीं पायी। आईएमए कैमूर की मांग है डॉ संजय कुमार की जल्द से जल्द वैज्ञानिक अनुसंधान कर पता लगाया जाय और राजस्थान सरकार द्वारा पारित राइट टू हेल्थ बिल वापस यथा शीघ्र वापस लिया जाय। बिल में ऐसे प्रावधान हैं जिसपर चिकित्सकों को आपत्ति है। साथ ही उन्होंने बताया है कि राइट टू हेल्थ बिल में आपातकाल में यानी इमरजेंसी के दौरान निजी अस्पतालों को निशुल्क इलाज करने के लिए बाध्य किया गया है। मरीज के पास पैसे नहीं हैं तो भी उसे इलाज के लिए इनकार नहीं किया जा सकता। निजी अस्पताल के डॉक्टरों का मानना है कि इमरजेंसी की परिभाषा और इसके दायरे को तय नहीं किया गया है। हर मरीज अपनी बीमारी को इमरजेंसी बताकर निशुल्क इलाज लेगा तो अस्पताल वाले अपने खर्चे कैसे चलाएंगे। राइट टू हेल्थ बिल में यह भी प्रावधान है कि अगर मरीज गंभीर बीमारी से ग्रसित है और उसे इलाज के लिए किसी अन्य अस्पताल में रैफर करना है तो एम्बुलेंस की व्यवस्था करना अनिवार्य है। इस नियम पर निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि एंबुलेंस का खर्चा कौन वहन करेगा। अगर सरकार भुगतान करेगी तो इसके लिए क्या प्रावधान है, यह स्पष्ट किया जाए। राइट टू हेल्थ बिल में निजी अस्पतालों को भी सरकारी योजना के अनुसार सभी बीमारियों का इलाज निशुल्क करना है। निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि सरकार अपनी वाहवाही लूटने के लिए सरकारी योजनाओं को निजी अस्पतालों पर थोप रही है। सरकार अपनी योजना को सरकारी अस्पतालों के जरिए लागू कर सकती है। इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों को बाध्य क्यों किया जा रहा है। योजनाओं के पैकेज अस्पताल में इलाज और सुविधाओं के खर्च के मुताबिक नहीं है। ऐसे में इलाज का खर्च कैसे निकालेंगे। इससे या तो अस्पताल बंद हो जाएंगे या फिर ट्रीटमेंट की क्वालिटी पर असर पड़ेगा।
उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति में बताया है कि दुर्घटनाओं में घायल मरीज, ब्रेन हेमरेज और हार्ट अटैक से ग्रसित मरीजों का इलाज हर निजी अस्पताल में संभव नहीं है। ये मामले भी इमरजेंसी इलाज की श्रेणी में आते हैं। ऐसे में निजी अस्पताल इन मरीजों का इलाज कैसे कर सकेंगे। इसके लिए सरकार को अलग से स्पष्ट नियम बनाने चाहिए। दुर्घटना में घायल मरीज को अस्पताल पहुंचाए जाने वालों को 5 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है। दूसरी तरफ अस्पताल वालों को पूरा इलाज निशुल्क करना होगा। ऐसा कैसे संभव होगा। अस्पताल खोलने से पहले 48 तरह की एनओसी लेनी पड़ती है। इसके साथ ही हर साल रिन्यूअल फीस, स्टाफ की तनख्वाह और अस्पताल के रखरखाव पर लाखों रुपए का खर्च होता है। अगर सभी मरीजों का पूरा इलाज मुफ्त में करना होगा तो अस्पताल अपना खर्चा कैसे निकालेगा। ऐसे में अगर राइट टू हेल्थ बिल को जबरन लागू किया तो को निजी अस्पताल बंद होने की कगार पर पहुंच जाएंगे।

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