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जनता दरबार के पीछे का सच, जाने शंखनाद के साथ!

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:- रागिनी शर्मा !

जनता दरबार की फिर से शुरुआत कर मुख्यमंत्री ने जहाँ एक तरफ आम आवाम के शिकायतों के निबटारे का रास्ता खोल दिया है वहीं पार्टी और सरकार की हो रही किड़कीड़ी से भी बचने का रास्ता तलाश लिया है।
मुख्यमंत्री के सामने अधिकांश मामले व्यक्तिगत समस्याओं से जुड़े आ रहें हैं जिसका वे तत्काल निबटारा करते हैं। पूरे सूबे के लोग अपनी बारी आने पर जनता दरबार मे अपनी समस्याएं लेकर आ रहे हैं और निदान लेकर जा रहे हैं।
जनता दरबार फिर से शुरू करने की जरूरत भी थी, दरअसल लगातार बढ़ते अपराध, भ्रष्टाचार और नौकरशाही से बिहार की जनता परेशान चल रही है। खुद सरकार में शामिल जदयु से लेकर भाजपा और सभी दलों के प्रमुख नेताओं की ओर से जब ये आरोप लगना शुरू हुआ कि अधिकारी किसी की सुनते नहीं, मंत्री तक कि नही सुनते तो आम जनता का क्या हाल होगा? इसकी शुरुआत हुई थी जदयु कोटे के मंत्री मदन सहनी के इस्तीफे की पेशकश से इसमे बाद बारी बारी से नेताओं ने आरोप लगाना शुरू कर दिया। विपक्ष तो पहले से ही सरकार को घेर ही रही थी।
इन आरोपों से घिरे और परेशान मुख्यमंत्री ने जब सच्चाई देखने की कोशिश की तो उन्हें एक ही रास्ता नजर आया जिससे ये सो चुके अधिकारी भी जाग जायें, नेताओं की भी सुनी जाय और जब नेताओं की सुनी जाय तो फिर जनता के समस्याओं की भी सुनवाई होनी चाहिये! इन समस्याओं से निबटने का एक ही सुगम मार्ग था जनता दरबार।
जो जनता से लेकर नेता और विपक्ष के आरोपों को झेलने की ताकत सरकार को दे सकता था, अतः मुख्यमंत्री ने जनता दरबार की शुरुआत कर दी। और हर दिन सौ से डेढ़ सौ तक मामलों का निष्पादन होने लगा। इसका फायदा ये हो रहा है कि जनता दरबार मे आ रहे विभिन्न प्रकार के समस्याओं के लिये अधिकारियों को निर्देश भी दिये जा रहे हैं और फटकार भी लगाये जा रहे हैं। इससे सो चुके अधिकारियों में सजगता बढ़ेगी, वो लोगों की सुनना जो बन्द कर दिये थे वो शिकायत दूर होगी और फिर से उनमें गतिशीलता आयेगी। क्योंकि जब सूबे का मुखिया जगा हो तो फिर अधिकारी हों या नेता मंत्री भला सोये कैसे रह सकते हैं। अगर सोये रहेंगे तो इसका क्या परिणाम होगा ये मंत्री हों या अधिकारी सबको पता है कि एक मुख्यमंत्री के पास क्या विधिकीय शक्तियां होती हैं और अनदेखी की गई तो उसका परिणाम क्या हो सकता है। दरअसल ये जनता दरबार मुख्यमंत्री सरकार और अधिकारियों के गिरते साख को बचाने की एक शुरुआत भर है, सो चुके जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों तक को जगाये रखने का प्रयास है। इससे मुख्यमंत्री के लोकप्रियता में भी वृद्धि होगी और सरकार की साख भी बची रहेगी। धीरे धीरे अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों में जब जागरूकता आयेगी तो जनता की समस्याओं का भी समाधान सुगम हो पायेगा।
हालाँकि करोड़ों की आबादी वाले राज्य में सौ डेढ़ सौ समस्याओं के समाधान से राज्य का कल्याण नही हो सकता लेकिन इसका असर दूर तक दिखाई देगा।
छोटे से लेकर बड़े अधिकारी और नेता तक को जनता के समस्याओं का समाधान के लिये आगे आना होगा वरना उन्हें पता है कि मामला जनता दरबार मे गया तो सूबे के मुखिया की नाराजगी झेलनी भारी पड़ जायेगी।
आज फिर मुख्यमंत्री ने जनता दरबार मे दर्जनों मामलों का तत्काल निबटारा किया। इस दौरान आज भी कई अधिकारियों को डाँटा गया, जोर से फटकार लगाई गई। और जब विभागों के प्रधान सचिव को ऐसी फटकार लगेगी तो ये डांट खाये अधिकारी नीचे के अधिकारियों के साथ क्या करेंगे ये समझने की जरूरत है।
इसलिये जनता दरबार का धीरे धीरे ही सही पर अगर ये कार्यक्रम सतत जारी रहा तो आने वाले समय मे फायदा
बहुत बड़ा देखने को मिलेगा। इसमे सबका कल्याण है, जनता के साथ नेता,और मंत्री का भी और खुद मुख्यमंत्री का भी।
हमारी शुभकामनाएं हैं मुख्यमंत्री जी को कि वे इस जनता दरबार को सतत जारी रखें।

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