रवि शंकर शर्मा :-
जदयू प्रदेश कार्यालय में पार्टी के प्रवक्ता श्री नीरज कुमार सहित पार्टी के अन्य प्रवक्ताओं श्री राहुल शर्मा, डॉ० सुनील कुमार, श्री अभिषेक झा, श्रीमती अंजुम आरा, सुश्री अनुप्रिया एवं श्री मति भारती मेहता ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए विधान पार्षद नीरज कुमार ने कहा कि –
जातिगणना रूकवाने के लिए दायर की गई जनहित याचिकाकर्त्ताओं में से ज्यादातर लोगों का भाजपा और संघ के साथ गहरा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रिश्ता है । मुख्य याचिका कर्त्ता के रूप में पटना हाई कोर्ट में दलील देने वाले यूथ ऑफ इक्यूलिटी संस्था अपने जन्म से ही आरक्षण विरोधी रही है । यूथ ऑफ इक्यूलिटी की स्थापना 2006 में तब हुआ था जब केन्द्र की मनमोहन सरकार द्वारा OBC को शिक्षण संस्थान में 27% आरक्षण देने के खिलाफ यूथ ऑफ इक्यूलिटी ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर किया था । नीरज कुमार ने बताया कि 2019 में भी सवर्णें को जब 10% आरक्षण दिया गया था तब भी यूथ ऑफ इक्यूलिटी ने विरोध किया था । यह वही यूथ ऑफ इक्यूलिटी संस्था है जो दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव 2006 में अधिकारिक तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का समर्थन किया था ।
यूथ ऑफ इक्यूलिटी के कई सदस्यों का जो इस मुकदमा में याचिकाकर्त्ता भी हैं उनका प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, विजय कुमार सिन्हा एवं धर्मेन्द्र प्रधान जैसे भाजपा नेताओं का फोटो एवं वीडियो जारी करते हुए आरोप लगाया कि ये सभी याचिकाकर्त्ताओं का सामाजिक न्याय विरोधी एवं आरक्षण विरोधी होने का बहुत पुराना इतिहास है । याचिकाकर्त्ताओं में से एक प्रो० मक्खनलाल के उपर सीधा आरोप लगाते हुए नीरज कुमार ने कहा कि वर्ष 2004 में अभद्रता करने के आरोप में नौकरी से निकाल दिया गया था। जबकि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ऐसे व्यक्ति को अलिगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नौकरी दे दी गई । इसी तरह एक अन्य याचिकाकर्त्ता प्रो० संगीत कुमार रागी के बारे में खुलासा करते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने अपनी किताब “RSS & Gandhi : The idea of India” में गाँधी के साथ-साथ बाबा साहब अम्बेदकर के सामाजिक न्याय की लड़ाई का मजाक उड़ाया ।
नीरज कुमार ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि मोदी सरकार ना सिर्फ जातिगणनाका विरोधी है बल्कि किसी भी गणना (जनगणना) का विरोधी है । यही कारण है कि वर्ष 2021 में होने वाली भारतीय जनगणना को कोरोना का बहाना लगा कर आज तक मोदी सरकार रोके हुए है । जबकि इस दौरान पाकिस्तान एवं बंगलादेश समेत लगभग 80 देशों ने अपने देश में जनगणना करवाया । मोदी सरकार के इस फैसले से देश में एक संवैधानिक संकट उत्पन्न होने वाला है । वर्ष 2026 में देश में परिसीमन होना है जिसके लिए जनगणना होना आवशक है । कर्नाटक में वर्ष 2014-15 में ही जातिगणनाहो चुकी है लेकिन आज तक कर्नाटक की भाजपा सरकार ने उसे सार्वजनिक नहीं किया है । जिसका जबाव कर्नाटक की जनता आगामि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भजपा को देगी । भारत ने वर्ष 2011 में भी मनमोहन सरकार ने सामाजिक आर्थिक जनगणना कराई लेकिन मोदी सरकार उस रिपोर्ट को भी आज तक सार्वजनिक नहीं किया है जिसका जबाव देश की जनता 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को देगी।




