सद्भावना, सकारात्मक ऊर्जा, प्रकृति पूजा का महापर्व छठ ।

SHARE:

पंकज कुमार जहानाबाद ।

वेदों , संहिताओं ,रामायण और महाभारत में लोक आस्था छठ व सूर्योपासना का उल्लेख मिलता है। चार दिवसीय महापर्व छठ एवं सूर्योपासना चैत्र शुक्ल चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक होती है। त्रेतायुग में भगवान राम एवं माता सीता , द्वापर काल में पांडव द्रौपदी ने की थी । बिहार का गया में गयार्क , देव में देवार्क , उमगा में उमगार्क , पंडारक में पुण्यार्क , उलार में उल्यार्क़ , बेलाउर , अंगयार्क , मुजफ्फरपुर , झारखंड , नेपाल , भारत का कोणार्क , मार्तण्ड , मनी चक पटना आदि क्षेत्रों में सूर्योपासना एवं सौरधर्म का स्थल पर भगवान सूर्य की उपासना की जाती है।सतयुग में ऋषि च्यवन एवं राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या , अंग राज कर्ण द्वारा छठ पूजा एवं सूर्योपासना की थी । अंगराज कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटेने के बाद रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। राजसूय यज्ञ के लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने आश्रम में आने का आदेश दिया था । ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगा छिड़क कर पवित्र किया एवं चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। ऋषि मुद्गल के आश्रम में माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। चार दिवसीय त्योहार की शुरुआत नहाय-खाय की परम्परा से होती है। चार दिनों तक चलने वाले लोकआस्था के इस महापर्व में व्रती को लगभग तीन दिन का व्रत रखना होता है जिसमें से दो दिन तो निर्जला व्रत रखा जाता है। बिहार, झारखंड और उत्तर भारत में मनाया जाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे पूरे देश में इसके महत्व को स्वीकार कर लिया गया है। छठ पर्व षष्ठी का अपभ्रंश है। इस कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया। छठ वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक माह में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ कहा गया है। छठ पूजा के लिए चार दिन महत्वपूर्ण हैं नहाय-खाय, खरना या लोहंडा, सांझा अर्घ्य और सूर्योदय अर्घ्य , छठ की पूजा में गन्ना, फल, डाला और सूप आदि का प्रयोग किया जाता है। छठी मइया को भगवान सूर्य की बहन बताया गया हैं। इस पर्व के दौरान छठी मइया के अलावा भगवान सूर्य की पूजा-आराधना होती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इन दोनों की अर्चना करता है उनकी संतानों की छठी माता रक्षा करती हैं। कहते हैं कि भगवान की शक्ति से ही चार दिनों का कठिन व्रत संपन्न होता है।छठ वास्तव में सूर्योपासना का पर्व है। इसलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इसमें सूर्य की उपासना उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए की जाती है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन सूर्यदेव की आराधना करने से व्रती को सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस पर्व के आयोजन का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी पाया जाता है। इस दिन पुण्यसलिला नदियों, तालाब या फिर किसी पोखर के किनारे पर पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करने वाले विष्णु भगवान द्वारा रची माया हैं। बालक के जन्म के छठे दिन छठी मैया की पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं और जिंदगी में किसी प्रकार का कष्ट नहीं आए। इस मान्यता के तहत ही इस तिथि को षष्ठी देवी का व्रत होने लगा।
छठ पूजा की धार्मिक भेदभाव, ऊंच-नीच, जात-पात भूलकर सभी एक साथ छठ पर्व मनाते हैं। भगवान । सूर्य, रोशनी और जीवन के प्रमुख स्रोत हैं । महापर्व में शुद्धता और स्वच्छता का विशेष ख्याल रखा जाता है और कहते हैं कि इस पूजा में कोई गलती होने पर तुरंत क्षमा याचना करनी चाहिए वरना तुरंत सजा मिल जाती है। छठ पर्व सबको एक सूत्र में पिरोने का काम करता है । मिट्टी के चूल्हे पर प्रसाद बनाता है । भगवान सूर्य के उपासक गंगा , नदी , तलाव तट पर बांस के बने सूप में अर्घ्य दिया जाता है।

Join us on:

Leave a Comment