शंकर दयाल मिश्रा के साथ पंकज कुमार ठाकुर!
शंखनाद पड़ताल!

डर… अगल-बगल के लोगों की मौत के कारण स्वभाविक है। स्वाभाविक है कि अभी गला भी कुटकुटाए तो धड़कन बढ़ जाती है। आम बोलचाल की भाषा में कहें तो फट के हाथ में आ जाती है। नतीजा डॉक्टर और जांच का चक्कर।
भागलपुर में जांच का रेट देखिए-
सिटी स्कैन- 6500/-
अन्य जांच- 4200/-
दवाएं- …!
मरता क्या नहीं करता। जांच के लिए लगी लंबी लाइन यही तो कह रही हैं। अभी जबकि एंटीजन किट और आरटीपीसीआर की रिपोर्ट में निगेटिव आने के बाद कोरोना वायरस फेफड़ा खा रहा है तो सिटी स्कैन और अन्य संबंधित जांच आवश्यक ही प्रतीत होता है।
पर, मेरे जैसे मध्यमवर्ग/प्राइवेट कंपनियों में नौकरी करने वाले लोग या गरीब क्या करेंगे!
शरीर खुद लड़ेगा या मरेगा…!
डर के बिजनेस का एक और उदाहरण सुनिए-
कुछ दिन पहले एक डॉक्टर के पास जाना हुआ था। N-95 मास्क लगाए था। पर क्लिनिक में प्रवेश से पहले स्टाफ ने कहा क्लीनिकल मास्क पहनिए तब ही पेशेंट लॉबी और डॉक्टर चेम्बर तक जा सकते हैं।
डॉक्टर साहब के क्लीनिक में ही उनका मेडिकल स्टोर भी है। स्टाफ ने वहां से क्लीनिकल मास्क खरीदने की सलाह दी (बाध्य नहीं किया)। डॉक्टर से मिलना जरूरी था। उनके मेडिकल स्टोर पर गया। 80 पैसे होलसेल वाला मास्क वहां ₹10 में खरीदा।
डर का इससे अच्छा बिजनेस क्या? मास्क रहते एक और मास्क खरीदना पड़ा और उस मामूली मास्क में 10 गुना से अधिक फायदा वसूल लिया।
मतलब डर के इस बिजनेस के तहत बीमारों का पॉकेट लूट लेने के छोटे से छोटे विकल्प पर भी नजर है। और बड़े स्तर पर जांच का भारी-भरकम दर ऊपर लिख ही दिया हूँ, जिस पर फिलहाल सरकार का कोई नियंत्रण नहीं दिख रहा है। सरकार/प्रशासन यदि सच में जनता के लिए है तो इस पर ध्यान देना चाहिए। महामारी के नाम से डरी जनता को इस दोहरी मार से बचाया जाना चाहिए।