एसवीपी कॉलेज में नारीवादी आंदोलन इतिहास पर सेमिनार!

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कैमूर/भभुआ(ब्रजेश दुबे):

शुक्रवार को इतिहास विभाग सरदार वल्लभभाई पटेल महाविद्यालय भभुआ कैमूर के द्वारा एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका विषय भारत में नारीवादी आंदोलन का इतिहास पर परिचर्चा की गई। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में डॉक्टर दीपक कुमार सहायक आचार्य श्री शंकर महाविद्यालय के रूप में कुशल भूमिका निभाई। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रभारी प्राचार्य डॉ शंकर प्रसाद शर्मा, संचालनकरता विभागाध्यक्ष डॉक्टर सीमा पटेल तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ अजीत कुमार राय के द्वारा किया गया ।कार्यक्रम का शुभारंभ मंच पर आसीन सभी विद्वतजन के द्वारा दीप प्रज्वलन एवं अतिथि सम्मान डॉ अजीत कुमार राय द्वारा अंग वस्त्र एवं स्मृतिपौधा अर्पण कर किया गया। विषय परिचय डॉ सीमा पटेल द्वारा किया गया जिसमे उन्होंने स्त्री आन्दोलन के इतिहास को समझाया साथ ही पित्र सत्तात्मक समाज से प्रभावित नारी को जब उसका उचित स्थान और सम्मान से वंचित किया गया तो उसने अपने अंदर की शक्ति को पहचानते हुए अपने अधिकारों के प्रति सजग होकर आंदोलन करना आरंभ किया। साथ ही महिला को आश्रित रहने की प्रवृति से दूर होकर शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनने की सलाह दी ।पुरुष और नारी दोनों एक दूसरे के उत्थान में परस्पर पूरक होते हुए एक सम्यक व्यवस्था की स्थापना करें जो राष्ट्र की प्रगति में सहयोगी हो। इसके पश्चात विभाग के पूर्ववर्ती छात्र एवं वर्तमान में प्राक परीक्षा प्रशिक्षण केंद्र, कैमूर के शिक्षक श्री ओमप्रकाश पटेल ने अपना वक्तव्य रखा जिसमें कहा की नारी का बाजारीकरण नारीवादी आंदोलन का हिस्सा नहीं।आधुनिक भारत मे राजाराम मोहन राय ने सती प्रथा का विरोध, विधवा पुनर्विवाह एवम मताधिकार का प्रयोग नारी उत्थान के रूप में आरम्भ किया। तत्पश्चात स्नातकोत्तर चतुर्थ सेमेस्टर के छात्र प्रफुल्ल कुमार दुबे, रवि प्रताप दुबे एवं स्नातकोत्तर द्वितीय सेमेस्टर की छात्राएं गुड़िया कुमारी और सोनी कुमारी द्वारा इस विषय पर विचार व्यक्त किए गए। इतिहास विभाग की ही सहायक आचार्या डॉक्टर संगीता सिंह ने कहा एक सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ आवश्यक होता है और आवश्यक है की महिलाएं अपने परिवार के पुरुषों को महिलाओं के सम्मान के प्रति जागरुक करते हुए सही संस्कार देने के लिए आगे आए। साथ ही स्त्रियों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता और उसे समाज में सफल प्रतिमूर्ति होकर स्थापित करना होगा। मुख्य वक्ता डॉ दीपक कुमार ने नारीवादी आंदोलन के वैश्विक प्रभाव से अपनी बात को प्रारम्भ किया । नारीवादी आंदोलन का आरम्भ पाश्चातय जगत से प्रमुखतः उभरा।उन्होंने प्राचीन भारत से लेकर अभी तक के नारी शोषण को चित्रित किया। उन्होंने बताया कि वैदिक काल में नारी की स्थिति अन्य काल की तुलना में सर्वश्रेष्ठ थी। साथ ही पुस्तकों के माध्यम से नारी आंदोलन के विभिन्न चरणों का उल्लेख किया । और औपनिवेशिककाल से लेकर अब तक हुए नारी आंदोलन के विभिन्न पक्ष और उनके सुधारों को क्रमबद्ध तरीके से समझाया । पण्डिता रमाबाई, सावित्री बाई फुले एवम अन्य जिन्होंने बालविधवा कल्याण एवम महिला शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान देते हुए उनके उत्थान में सहायक रही।जेंडर यानी लिंगबोध एवम नैसर्गिक लिंग के बीच का फ़र्क बताते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक अवधारणा के अंतर्गत लिंगबोध कराया जाता है।प्रत्येक के अपने गुण है परंतु समाज द्वारा कमज़ोर समझा जाता है।आवश्यक है कि अपनी शक्ति को स्वयं पहचाने और आत्मविश्वास के साथ जीवन मे आगे बढ़े।मध्यकालीन कमज़ोर महिला की संकल्पना को जिसमे महिला या तो पिता, पति या पुत्र के अधिनस्त या संपत्ति अथवा भोग्या के रूप में छवि परिलक्षित थी आज के वर्तमान युग की आत्मनिर्भर नारी चूर चूर करने को आतुर हो अग्रसर है।अन्य वक्ता में डॉ अखिलेंद्र नाथ तिवारी ने नारी आन्दोलन के विभिन्न पक्षों के बारे में बोला और नारी को स्वतः सशक्त माना। डॉ वंशीधर उपाध्याय ने कविता के माध्यम से नारी सशक्तिकरण पर जोर दिया ।कार्यक्रम में दर्शनशास्त्र विभाग से डॉ अविनाश एवम मनोविज्ञान विभाग से डॉ सीमा सिंह और डॉ नेयाज अहमद सिद्दीक्की की सहभागिता रही। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ अजीत कुमार राय ने बताया कि नारी जब तक खुद को कमजोर मानेगी तब तक उसका शोषण होता रहेगा । स्त्री शिक्षा में माध्यम से अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो और समाज को उन्नति के पथ पर ले जाए । इस कार्यक्रम में स्नातकोत्तर द्वितीय एवम चतुर्थ सेमेस्टर के लगभग 200 छात्र छात्राएं उपस्थित रहे ।

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