बुराइयों पर सत्य की जीत का पर्व है दशहरा या विजयादशमी!

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प्रस्तुति -अनमोल कुमार

पौराणिक काल से ही भारतीय संस्कृति वीरता और शौर्य की उपासक रही है। भारतीय संस्कृति कि गाथा देश के अलावा विदेशों में भी सुनाई देती है। तभी तो पूरी दुनिया ने कभी भारत को विश्व गुरु माना था। जानते हैं आज हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहार दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी मनाया जाता है। दशहरा केवल त्योहार ही नहीं, बल्कि इसे कई बातों का प्रतीक भी माना जाता है। इस त्योहार के साथ कई धार्मिक मान्यताएँ व कहानियाँ भी जुड़ी हुई है। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा या विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है जो हिन्दू धर्म के बड़े त्योहारों में से एक है। इस पर्व को भगवान राम की जीत के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान राम ने लंकापति नरेश रावण का वध किया था। इसी के साथ यह पर्व देवी दुर्गा की आराधना के लिए मनाये जाने वाले शारदीय नवरात्रि का दसवां दिन होता है। इस पर्व को आश्विन माह की दशमी को देश के कोने-कोने में उत्साह और धार्मिक निष्ठा के साथ बड़े उल्लास से मनाया जाता है। क्योंकि यह त्योहार ही हर्ष, उल्लास और विजय का प्रतीक है। दशहरे में रावण के दस सिर इन दस पापों के सूचक माने जाते है| काम, क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा, आलस्य, झूठ, अहंकार, मद और चोरी है| इन सभी पापों से हम किसी ना किसी रूप में मुक्ति चाहते है| और इस आस में हर साल रावण का पुतला बड़े से बड़ा बना कर जलाते है कि हमारी सारी बुराइयाँ भी इस पुतले के साथ अग्नि में स्वाह हो जाये| इस दिन भगवान राम ने राक्षसराज रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से छुड़ाया था। राम-रावण युद्ध नवरात्रों में हुआ था। रावण की मृत्यु अष्टमी-नवमी के संधिकाल में हुई थी और उसका दाह संस्कार दशमी तिथि को हुआ। जिसका उत्सव दशमी के दिन मनाया गया। इसीलिये इस त्यौहार को विजयदशमी के नाम भी से जाना जाता है। दशहरे के दिन जगह-जगह रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले जलाए जाते हैं। देवी भागवत के अनुसार इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस को परास्त कर देवताओं को मुक्ति दिलाई थी इसलिए दशमी के दिन जगह-जगह देवी दुर्गा की मूर्तियों की विशेष पूजा की जाती है। कहते हैं रावण को मारने से पूर्व राम ने दुर्गा की आराधना की थी। मां दुर्गा ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें विजय का वरदान दिया था।

शस्त्र और उपकरणों का पूजन : इस दिन राजा, सामंत और सरदार यह सभी वीर अपने उपकरणों और शस्त्रों की पूजा करते हैं। उसी अनुसार किसान और कारीगर अपने अपने औजारों की पूजा करते हैं। कुछ लोग शस्त्र पूजा नवमी के दिन करते हैं। लेखनी और पुस्तक यह भी विद्यार्थियों के लिए शस्त्र ही हैं। इसीलिए विद्यार्थी उसका पूजन करते हैं। इस पूजन के पीछे का उद्देश्य है कि उन चीजों में ईश्वर का रूप देखना अर्थात ईश्वर से एकरूपता साधने का प्रयत्न करना।
सरस्वती पूजन : इस दिन सरस्वती पूजन भी करते हैं । दशहरे के दिन कार्यरत सरस्वती जी के मारक तत्व की लहरी का लाभ होकर पूजक का क्षात्र तेज जागृत होता है ।
राज विधान : दशहरा विजय का त्यौहार होने के कारण इस दिन राजघराने के लोगों को विशेष विधान बताया गया है ।

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