समाज में बढ़ते अपराध और धर्म की वास्तविकता पर बोले स्वामी कृष्णानंद!

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रिपोर्ट अनमोल कुमार

दरभंगा।भारतीय चरित्र निर्माण संस्थान के राष्ट्रीय महासचिव,स्वामी कृष्णानंद झा ने कहा कि आज के समय में समाज में बढ़ते अपराध और अराजकता को देखकर यह प्रश्न उठता है कि इसका कारण क्या है? इसका उत्तर है व्यक्ति का गिरता चरित्र। व्यक्ति का चरित्र बनता है संस्कारों से, और संस्कार मिलते हैं परिवार और समाज से। लेकिन जब परिवार और समाज ही संस्कारों को भूल जाएं, तो संस्कार कहाँ से प्राप्त करें? यह एक गंभीर प्रश्न है और विचारणीय भी।

आज हम समाज में देखते हैं अराजकता, जातिवाद, अलगाववाद, और आतंकवाद जैसी समस्याएं। इन सबका कारण क्या है? इन सबका कारण है कि हम सब अपने धर्म को भूल गए हैं। धर्म का अर्थ हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैनिसम और बुद्धिज़्म नहीं है। धर्म की वास्तविकता है न्याय, अर्थात जस्टिस। व्यक्ति को न्याय मिले, दोषियों को दंड मिले, यही व्यवस्था है धर्म।

श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने श्लोक 7 और 8 में कहा है:

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत,
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्,
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।”

अर्थात, जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने रूप में अवतार लेता हूँ। साधुओं की रक्षा करने और दुष्टों का विनाश करने के लिए, और धर्म की स्थापना करने के लिए, मैं युग-युग में अवतरित होता हूँ।

इस प्रकार, धर्म की वास्तविकता को समझकर और उसके अनुसार आचरण करके, हम समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर कर सकते हैं। श्रेष्ठ ज्ञान और संस्कारों के साथ, व्यक्ति अपने जीवन में सुधार ला सकता है और समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बन सकता है।

निष्कर्ष

श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान के अनुसार, धर्म की वास्तविकता है न्याय और व्यवस्था। हमें अपने वास्तविक संस्कृति और धर्म को जानना चाहिए और जानकर अन्य लोगों के लिए भी इस ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना चाहिए। श्रेष्ठ कर्मयोगी मानव निर्माण अभियान ही श्रेष्ठ राष्ट्र की पहचान है।

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