प्रस्तुति – अनमोल कुमार
ठेकुआ :-
छठ के बाद का खालीपन,
जैसे विदाई के बाद का घर।
मानो छठ से छठ ही चलता है,
हमारा कैलेंडर।
संतरा, केतारी और ठेकुआ,
पैकिंग करो ट्रेन का टाइम हुआ।
भाई बहिन, दोस्त यार
आरो बातें हजार,
कल से माई अकेली,
वही सूना अंगना दुआर।
ठेकुआ की पोटली ले,
दिल के हिस्से को छोड़,
चल पड़े हम शहर की ओर।_