✍️शंकर

कम्युनिस्ट पार्टियों के अलावे भाजपा के बाद जदयू देश की दूसरी लोकतांत्रिक पार्टी है। इसमें उसके संगठन से जुड़ा व्यक्ति शीर्ष तक जा सकता है/आगे जाएगा भी। खास बात यह कि जनता के रूप में हम उसे सहजता स्वीकार भी कर रहे हैं। बाकी कांग्रेस (देश स्तर पर) और अधिकतर क्षेत्रीय दलों (विभिन्न राज्यों में) को देखें तो वहां राजा का बेटा/बेटी ही राजगद्दी संभालेगा…! यही परिपाटी चल रही है। ऐसे दलों में अगर राजा के वंशज को छोड़ कोई दूसरा चेहरा अगर सामने किया भी जाता है तो हम जनता ही उसे अस्वीकार कर देते हैं।
इसी आधार पर मेरा मानना है कि देश की पहली लोकतांत्रिक पार्टी भाजपा और अब दूसरी जदयू। हालांकि इन दोनों पार्टियों के नेतृत्व/सत्ताशीनों पर तानाशाह होने का भी आरोप लगता रहा है। लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर वे लोकतांत्रिक सिद्धांतों का अनुपालन करते दिखते हैं।
पहले मैं सोचता था कि जदयू में नीतीश कुमार के बाद कौन? मेरे जैसे बहुत लोग सोचते होंगे कि यह भी तो वन मैन पार्टी है। राजद में लालू के बाद तेजस्वी ने कमान संभाली और स्वीकार कर लिए गए। अन्य राज्यों में भी क्षेत्रीय पार्टियों के नेता पुत्र/पुत्री ही नेता के रूप में स्वीकार्य हुए। लेकिन नीतीश के बाद क्या होगा जदयू का? 15 वर्ष से अधिक से बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक विरासत (मने कि जदयू) को अपने पुत्र निशांत को सौंपने की कभी कोई पहल नहीं की और निशांत ने भी राजनीति में आने की कोई रुचि नहीं दिखाई। ऐसे में राजा का बेटा राजा वाली अधिकतर जनता की सोच…! बहुत लोग तो मान बैठे कि नीतीश के बाद जदयू नेपथ्य की ओर…। लेकिन 2020 के बिहार चुनाव में पार्टी के तीसरे नंबर पर आने के बाद नीतीश कुमार और उनकी टीम अभी जमीनी स्तर पर जिस सुनियोजित तरीके से पार्टी को मजबूत करने में लगी है वह बता रहा है कि नीतीश के बाद भी पार्टी युवाओं (खासकर बिहारी) के लिए राजनीति में आने का एक बड़ा प्लेटफार्म होगी। सबसे अच्छी बात है कि पार्टी हर जाति-वर्ग को जोड़कर मजबूत जमीन तैयार कर रही है।
ललन सिंह को पार्टी की कमान सौंपकर नीतीश कुमार ने अपने ऊपर लगने वाले लव-कुश के ठप्पे को भी धोने का उपक्रम किया है। हालांकि जातीय राजनीति में जकड़े बिहार और देश को से मुक्ति दिलाने की कोई कोशिश नहीं की। शायद वोट बैंक की राजनीति से तैयार वर्तमान परिस्थिति ऐसा कर पाना और सत्ता के शीर्ष पर बने रहना किसी नेता के लिए संभव नहीं है। लेकिन नीतीश कुमार ने जातियों में बैठे समाज के हर वर्ग को सामाजिक योजनाओं और अब पार्टी में भी मजबूत प्रतिनिधित्व देने की हमेशा कवायद की है। यह उनकी दीर्घकालीन सोच समझ में आती है।
इसी आधार पर जदयू देश की दूसरी बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी के रूप में आने वाले वर्षों में अपनी पैठ जमा ही लेगा। आम कार्यकर्ताओं के बीच से ही कोई चेहरा उभर कर सामने आ जाएगा।