ऋषभ कुमार की रिपोर्ट :-
सबकी मुरादें पूरी करती हैं चमरहरा वाली दुर्गा मइया
130 वर्ष पहले चमरहरा में मां दुर्गा की हुई थी स्थापना
महनार प्रखंड के चमरहरा गांव में स्थित मां दुर्गा मंदिर से भक्त खाली हाथ वापस नहीं लौटते. सच्चे दिल से मांगी गयी हर मुराद मां के दरबार में पूरी होती है. 139 वर्ष पूर्व चमरहरा वाली दुर्गा मैया की स्थापना की गयी थी. इस गांव के पूर्वज बंगाल में व्यवसाय किया करते थे, उन्हीं ने संपूर्ण बंगाली पद्धति के अनुसार प्रतिमा स्थापित कर माता रानी की उस वक्त पूजा-अर्चना शुरू की थी.
ऐसी मान्यता है कि जब चमरहरा के आस-पास के इलाकों में हैजा, कलरा, चेचक आदि महामारी फैली हुई थी, तो जाती है. चमरहरा वाली दुर्गा मैया की प्रतिमा स्थापित कर पूजा शुरू की गयी. इसके बाद महामारी में कमी आती गयी और चमरहरा वाली दुर्गा मैया के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती गयी. आज माता के प्रति लोगों की अटूट आस्था है. दूर- दूर से माता के भक्त चमरहरा आकर पूजा- अर्चना कर बकरे की बली चढ़ाते हैं. एक माह पूर्व से बलि चढ़ाने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया जाता है और भक्तों
महनार के चमरहरा गांव में स्थित मां दुर्गा का मंदिर के नाम की सूची का प्रकाशन पूजा के पूर्व की जाती है. यहां पर षष्ठी को माता को पट (आंख) खुलता है और उन्हें दौरान काफी भीड़ होती है. सर्वप्रथम शीशकोहरे के बलि चढ़ायी
पांच दिनों तक लगता है मेला: ग्रामीण क्षेत्र के अतिरिक्त यहां आवागमन के भरपूर साधन होने की वजह से यहां दर्जनों गांवों के श्रद्धालुओं के अतिरिक्त अन्य जिलों से भक्तों की भीड़ मेले में उमड़ती है पांच दिनों तक लगने वाले इस मेले में दूर-दूर के दुकानदार आते है इस दौरान संध्या में प्रवचन, कीर्तन का आयोजन होगा तथा रात्रि में जागरण का भव्य कार्यक्रम किया गया है. सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान काफी भीड़ उमड़ती है!
प्रतिमा विसर्जन पर उमड़ती है हजारों की भीड़ : चमरहरा वाली दुर्गा मैया की प्रतिमा का विसर्जन दशहरा की शाम में होती है. विशाल प्रतिमा को हजारों की संख्या में भक्त अपने कंधों पर जयकारा लगाते हुए उठा लेते हैं और पूरे गांव के देवी-देवताओं के पास प्रतिमा को ले जाया जाता है. इसी दौरान दो किलोमीटर तक लगभग 20 हजार से अधिक माता के भक्तों की भीड़ लगी रहती है! दर्जनों गांवों के माता के भक्त विसर्जन जुलूस में भाग लेते हैं!
Rishav kumar Hajipur