:- रागिनी शर्मा!
जीर्णोद्धार की राह देखता भगवान श्री राम से जुड़ा श्रृंगीऋषि धाम!
बिहार में धार्मिक पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, रामायण और महाभारत काल से जुड़े कई धार्मिक स्थल आज भी जीर्णोद्धार की राह देख रहे हैं।
मुगल काल से पहले कई राजाओं द्वारा समय समय पर इन स्थलों का विकास किया गया यही कारण है कि आज भी ये धार्मिक और पौराणिक तीर्थस्थल अवशेष के रूप में बचे हुये हैं।
वर्तमान में आजादी के बाद से आजतक कई सरकारें आई गई परन्तु किसी ने भी इन स्थलों के विकास पर ध्यान नहीं दिया।
ऐसे ही स्थानों में शुमार है लखीसराय जिले का श्रृंगीऋषि धाम, जो आज भी जीर्णोद्धार की राह देख रहा है, जिसके सम्बंध प्रभु श्री राम के अवतरण से बाल्यकाल तक सीधे जुड़े हैं। भगवान से अवतरण से लेकर मुंडन तक से है इस स्थान का सीधा संबंध।
श्री राम चरित मानस के पेज नम्बर 190 के दूसरे चौपाई में महाकवि तुलसीदास जी लिखते हैं ” सृंगी रिषिहि वशिष्ठ बोलावा, पुत्रकाम सुभ जग्य करावा। भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें,प्रगटे अगिनि चरु कर लीन्हें।।”
तुलसीदास जी गुरु वशिष्ठ जी के हवाले से महाराज दशरथ से कहते हैं। कि आपको संतान के लिये पत्नियों समेत महर्षि श्रृंगी के आश्रम याचक की तरह जाना होगा और उनसे पुत्र कामेष्टि यज्ञ कराने की याचना करनी होगी। महाराज दशरथ ने ऐसा ही किया और तब महर्षि श्रृंगी उनके साथ अयोध्या गये और पुत्र कामेष्टि यज्ञ सम्पन्न कराया, जिसके उपरांत अग्नि देव हाथ मे खीर लिये प्रकट हुये जिसे तीनों रानियों में बांटा गया और भगवान श्री राम अपने भाइयों के साथ अवतरित हुये।
धार्मिक पर्यटन बिहार को विकास की नई दिशा प्रदान कर सकता है। इसके बाबजूद लगातार उपेक्षा से अब लोग भी ऊबने लगे हैं।
पूर्णियाँ के बनमनखी में भगवान नरसिंह का प्रकाट्यस्थल हो या सीतामढ़ी में माँ जानकी का प्राकट्य स्थल, शेखपुरा में भीम की पत्नी हिडिम्बा द्वारा स्थापित शिवलिंग हो या लखीसराय में भगवान श्री राम से जुड़ा श्रृंगीऋषि धाम सबके सब उपेक्षा के शिकार हैं।
ऐसे कई और धार्मिक पौराणिक स्थल हैं जिसके विकास से राज्य का विकास सीधे तौर पर जुड़ा है।
सरकार को इसे धार्मिक चश्मे से ना देखते हुये बिहार के विकास के नजरिये से देखना चाहिये और इन स्थलों का विकास करना चाहिये।